प्रतिनिधि , मुंगेरगंगोत्री के तत्वावधान में मंगलवार को शहर के बेलन बाजार में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया. जिसका विषय ‘ हमारी गंगा-जमुनी संस्कृति और गजल ‘ था. गोष्ठी की अध्यक्षता पूर्व प्राचार्य प्रो. रामचरित्र सिंह ने की. मुख्य वक्ता विद्वान साहित्यकार शिवचंद्र प्रताप ने कहा कि गजल को आशिक और माशूक के बीच की बात-चीत कहा गया है. इस विद्या के शिल्प का ताल्लुक ‘गजला’ यानी कुलांचे मारने वाले हिरण की चाल से है. लेकिन गहराई से देखने पर पता चलता है कि गजल के कथ्य और शिल्प दोनों का ताल्लुक तसब्बुफ अर्थात सूफी मत से है. यह मत गजल े के माध्यम से भारत की गंगा-जमुनी संस्कृति को व्यंजित करता है. उन्होंने कहा कि शोध से पता चलता है कि इश्क हकीकी और उसके फना व बफा में रूपांतरित हो जाने वाले अद्वैत, वहतुल वजूद का दर्शन सूफी मत को भारत के वेदांत से प्राप्त हुआ. दरअसल सूफी मत इस्लाम के होठों पर वेदांत की मुस्कान है और गजल उसके दिल की धड़कन है. हम इस हकीकत को नजर अंदाज नहीं कर सकते कि प्राय: तमाम भक्ति कालीन कवि सूफी है. हिंदी और उर्दू गजलों का फर्क स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि उर्दू गजल के शेर एक दूसरे से तारतम्य नहीं रखते. लेकिन हिंदी गजलों में शेर सामान्यत: एक दूसरे से तारतम्य रखते है. कुल मिला कर भारत की गंगा जमुनी संस्कृति की देन गजल है. प्रो. रामचरित्र सिंह ने गजल को हिंदी-र्दू एकता का प्रतीक बताया और कहा कि सभी एक ही उद्गम के स्रोत है. मौके पर डॉ केके वाजपेयी, प्रो. अवध किशोर सिंह, शिवनंदन सलिल, डॉ पूनम रानी, शीतांशु शेखर सहित अन्य मौजूद थे.
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हमारी गंगा-जमुनी संस्कृति और गजल विषय पर गोष्ठी आयोजित
प्रतिनिधि , मुंगेरगंगोत्री के तत्वावधान में मंगलवार को शहर के बेलन बाजार में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया. जिसका विषय ‘ हमारी गंगा-जमुनी संस्कृति और गजल ‘ था. गोष्ठी की अध्यक्षता पूर्व प्राचार्य प्रो. रामचरित्र सिंह ने की. मुख्य वक्ता विद्वान साहित्यकार शिवचंद्र प्रताप ने कहा कि गजल को आशिक और माशूक के […]
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