हरी खाद ढैंचा का 916.80 क्विंटल बीज का आवंटन

रसायनिक उर्वरक के अधिक प्रयोग से मिट्टी का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है. किसान खेतों में कृषि उपज बढ़ाने के लिए अंधाधुंध रासायनिक खाद व कीटनाशकों का उपयोग कर रहे हैं.

By Prabhat Khabar | April 27, 2024 10:27 PM

मोतिहारी. रसायनिक उर्वरक के अधिक प्रयोग से मिट्टी का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है. किसान खेतों में कृषि उपज बढ़ाने के लिए अंधाधुंध रासायनिक खाद व कीटनाशकों का उपयोग कर रहे हैं. रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के बढ़ते प्रयोग से फसलों की पैदावार में वृद्धि तो होती है, परंतु जमीन की उर्वरा शक्ति दिन प्रतिदिन कम होती जाती है. जिसका मुख्य कारण रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक इस्तेमाल करना है. इससे जमीन की पानी सोखने की क्षमता लगातार कम होती जा रही है, नतीजा जमीन के बंजर होने का खतरा बढ़ रहा है. ऐसे में खेतों में रसायनिक उर्वरकों का कम उपयोग कर प्राकृतिक हरी खादों का उपयोग अत्यधिक लाभकारी है. ढैंचा, लोबिया, उड़द, मूंग, बरसीम आदी कुछ मुख्य फसलें हैं, जिसका उपयोग हरी खाद बनाने में किया जाता है. सरकार हरी खाद को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं भी चला रही है. इनमें किसानों को हरी खाद खेती के प्रोत्साहन के लिए 90 फीसदी अनुदान पर बीज मुहैया करा रहा है. डीएओ प्रवीण कुमार ने कहा कि इच्छूक किसान बीज के लिए कृषि पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं. खरीफ फसल 2024 के विभागीय योजनाओं में विभिन्न फसल यथा ढ़ैंचा, धान, मक्का, मोटा अनाज, दलहन, तेलहन एवं उद्यानिक फसलों के बीज किसानों को समय पर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से ऑनलाइन आवेदन शुरू हो चुका है. किसान 10 जून तक पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं. बीज वितरण 5 जून से 15 जून तक किया जायेगा. बिहार सरकार राज्य में भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए ढैंचा फसल की खेती को बढ़ावा दे रही है. ढैंचा बीज के लिए राज्य सरकार किसानों को 90 प्रतिशत अधिकतम 6300 रुपए प्रति क्विंटल की दर से अनुदान दे रही है. शेष 10 प्रतिशत राशि किसानों को भुगतान करना है. राज्य सरकार ने ढैंचा बीज का मूल्य 8 हजार रुपए प्रति क्विंटल तय किया है. योजना के अनुसार किसान को 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर अधिकतम एक हेक्टेयर के लिए बीज मिलेगा. किसान परामशी डॉ मुकेश कुमार ने बताया कि ढैंचा फसल कम लागत में अच्छी हरी खाद का काम करती है. इससे भूमि को पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन मिल जाता है, जिससे किसानों को अगली फसल में कम यूरिया की आवश्यकता होती है. हरी खाद से भूमि में कार्बनिक पदार्थ बढ़ने से भूमि व जल संरक्षण और संतुलित मात्रा में पोषक तत्व मिलने से भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ जाती है. ढैंचा की पलटाई कर खेत में सड़ाने से नाइट्रोजन, पोटाश, गंधक, कैलिशयम, मैगनीशियम, जस्ता, तांबा, लोहा आदि तमाम प्रकार के पोषक तत्व प्राप्त होते हैं. जिससे फसलों की पैदावार तो बढ़ती है साथ ही कम रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता पड़ती है, जिससे कृषि की लागत भी कम हो जाती है.

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