सरहदों पर बहुत तनाव है क्या, कुछ पता तो करो चुनाव है क्याप्रभात खबर का आयोजनपूर्णिया के कला भवन में डॉ राहत इंदौरी व मुनव्वर राणा की शाम-ए-महफिलशहरों में तो बारूदों का मौसम है, गांव चलो वहां अमरूदों का मौसम हैजिला जज अरविंद कुमार व प्रमंडलीय आयुक्त सुधीर कुमार ने दीप प्रज्वलित कर किया कार्यक्रम का आगाजप्रतिनिध, पूर्णियासरहदों पर तनाव है क्या ….. ? पता तो करो….. चुनाव है क्या….. और तालियों की बरसात से कला भवन का मुक्ताकाश गूंज उठा. यह अलफाज थे शेर-ओ-शायरी के अजीम फनकार डाॅ राहत इंदौरी के. फिर क्या था उनके पहले ही अंदाज में दर्शक उनके अंदाज के दीवाने हो उठे. दर्शक दीर्घा की मदहोशी इस कदर परवान पर थी कि दूसरे ही पल इंदौरी साहब ने दूसरी शायरी से समां बांध दिया. जैसे ही उनके अलफाज शायरी बन कर श्रोताओं के कानों तक गूंजे वाह-वाह की आवाज के साथ तालियों की गड़गड़ाहट फिर गूंज उठी. अपने पुराने अंदाज में उन्होंने कहा ‘ किसने दस्तक दी इस दिल पर कौन है…. आप तो अंदर बैठे हैं, बाहर कौन है.’ उन्होंने अपने शायराना अंदाज में श्रोताओं के नब्ज पर वार करते हुए कहा ‘शहरों में तो बारूदों का मौसम है, गांव चलो वहां अमरूदों का मौसम है.’ सोमवार को शहर का कला भवन शहर के वाशिंदों के निगाहों में बस चला था. शाम ढली और मुशायरा के दिवानों की भीड़ का दीवाना परवान चढ़ चला. कला भवन के मुक्ताकाश के नीचे शेर-ओ-शायरी की महफिल सजी मेहफिल महक उठा. कला भवन का कोना-कोना शेर-ओ-शायरी के दिवानों से भरा था. हर एक कुरसी पर दिवाने बैठे थे. जिन्हें कुरसी नहीं मिली वो खड़े-खड़े ही शायरी, गीत व नज्म सुन कर अपनी ख्वाबों की तसवीर गढ़ रहा था. शेर-ओ-शायरी जब फिजाओं में गूंजा तो पूस की रात में शाम-ए-महफिल महक उठी. दर्शक दीर्घा में बैठे श्रोता ख्यालों की दुनिया से सपनों के समुंदर में समा गये थे. ये रात ऐसी महकी, जैसे सर्द रातों में आंसू की बूंदों से रात रानी खिल कर जवां होती है. तालियों की गड़गड़ाहत से गूंजा मुक्ताकाशअवसर था प्रभात खबर के तत्वावधान में शहर के कला भवन में आयोजित कार्यक्रम शाम-ए-महफिल का. प्रभात खबर द्वारा आयोजित कार्यक्रम शाम-ए-महफिल का उद्घाटन सोमवार की संध्या जिला जज अरविंद कुमार व प्रमंडलीय आयुक्त सुधीर कुमार ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया. इस अवसर पर शेर-ओ-शायरी के बेताज बादशाह मुन्नवर राणा व डाॅ राहत इंदौरी ने अपनी प्रस्तुति दी तो मानों वक्त थम सा गया. महफिल में शेर व शायरी के धुन पर तालियां की गड़गड़ाहट से मुक्ताकाश गूंज उठा. श्रोताओं में दिवानगी का आलम यह था कि दूरियां मिटती रही. कोई महफिल के तान पर ठुमका लगाते दिखे तो किसी की आंख नम हुई. इस दौरान कई दफा महफिल सजी और मुशायरे के दिवानों की दीवानगी परवान चढ़ती रही. कोई मुशायरे के धुन पर ख्वाबों के सातवें आसमान का सैर करता दिखा तो कोई मंत्रमुग्ध होकर अपनी दुनिया मुशायरा में बसा चला था. सर्द रातें भी महफिल में सजते मुशायरा के धुनों पर भावों की गरमी से पिछली और अपने तहों तले खुशबू का समुंदर दबाये बैठी थी. श्रोताओं में डाॅ राहत इंदौरी व डा मुन्नवर राणा की प्रस्तुतियों से पहली दफा सीधे रू-ब-रू होने की इस कदर बेकरारी थी कि उन्हें एक-एक पल और सदियां महसूस होती थी. देर शाम घड़ी की सूईयाें ने 06:45 बजाये तो हॉल में शेरों की दुनिया के बादशाह मुन्नवर राणा और राहत इंदौरी के कदम पड़े. लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उठ कर शाही अंदाज में स्वागत किया. ये जो कांधे पर सूरज लिए फिरते हैं…स्वागत से अभिभूत डाॅ राहत इंदौरी ने शायरी से खुद को जोड़ा और बोले ‘फैसला जो कुछ भी हो, मंजूर होना चाहिए, जग हो या इश्क भरपूर होना चाहिए ‘. इसके बाद मंच संभालते ही मुन्नवर राणा मातृभूमि के प्रति अपने इश्क का इजहार करते हुए बोले ‘जिस्म पर मिट्टी मलेंगे तो पाक हो जायेंगे हम, जमीं इक दिन तेरी खुराक हो जायेंगे हम’ हुकूमत पर तंज कसते हुए राणा साहेब ने कहा ‘ये जो कांधे पर सूरज लिए फिरते हैं, मर भी जाये तो मुन्नवर राणा नहीं होने वाले’. फिर परिवार के बूढ़े सजर पर इन्होंने कुछ यूं कहा ‘और कुछ रोज यूं ही बोझ उठा ले बेटा, चल दिये हम तो फिर मयस्सर नहीं होने वाले’. इसके बाद कुछ पल डाॅ राहत इंदौरी फिर मुन्नवर राणा, दोनों अपनी प्रस्तुतियों की गंगा-जमुना में श्रोताओं को डूबाते-उतराते रहे.
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