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महागंठबंधन से अलग होना महंगा पड़ा तारिक को

महागंठबंधन से अलग होना महंगा पड़ा तारिक को फोटो नं. 2 कैप्सन-सांसद तारिक अनवर.प्रतिनिधि, कटिहारविधानसभा चुनाव परिणाम ने कई तरह के सियासी संकेत भी दिये हैं. रविवार को जिले के सातों विधानसभा सीटों के चुनाव परिणाम आने के बाद कई सियासी दिग्गज के राजनीतिक कैरियर पर सवाल उठने लगे हैं. खासकर सियासी तबकों में राष्ट्रवादी […]

महागंठबंधन से अलग होना महंगा पड़ा तारिक को फोटो नं. 2 कैप्सन-सांसद तारिक अनवर.प्रतिनिधि, कटिहारविधानसभा चुनाव परिणाम ने कई तरह के सियासी संकेत भी दिये हैं. रविवार को जिले के सातों विधानसभा सीटों के चुनाव परिणाम आने के बाद कई सियासी दिग्गज के राजनीतिक कैरियर पर सवाल उठने लगे हैं. खासकर सियासी तबकों में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव व स्थानीय सांसद तारिक अनवर के सियासी भविष्य को लेकर तरह-तरह के कयास लगाये जा रहे हैं. जानकारों की मानें तो जिस तरह महागंठबंधन से अलग होकर श्री अनवर ने तीसरा मोरचा के साथ चुनाव लड़ने की घोषणा की. बाद में तीसरा मोरचा से भी अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया. चुनाव परिणाम आने के बाद एनसीपी को इस तरह का फैसला लेना महंगा साबित हुआ है. पूरे बिहार में कटिहार श्री अनवर का गढ़ माना जाता रहा है, लेकिन 15 वीं व 16 वीं विधानसभा चुनाव में एनसीपी का एक भी उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाये. पिछले चुनाव में तो एनसीपी चार सीटों पर टक्कर में भी रही थी, लेकिन इस बार जिले के अधिकांश सीटों पर एनसीपी के प्रत्याशी तीसरे स्थान पर चले गये. कम हुआ सियासी प्रभाव——————यह विधानसभा चुनाव श्री अनवर के सियासी कैरियर से जुड़ा माना जाता रहा है. यही वजह था कि मतदान के अंतिम समय तक श्री अनवर वोटरों को अपने पक्ष में गोलबंद करने के लिए पूरी ताकत झोंक दिया था. लेकिन अपने वोटों पर श्री अनवर का पकड़ ढीला पड़ गया. वोटरों पर श्री अनवर का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और वोटरों ने महागठबंधन को अपना पसंद बनाया. चुनाव में मिली करारी हार से श्री अनवर के सियासी भविष्य का सवाल उठने लगे हैं. उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव 2014 में श्री अनवर को राजद व कांग्रेस का समर्थन मिला था. जानकार बताते हैं कि इसी समर्थन की वजह से लगातार तीन बार हारने के बाद श्री अनवर 2014 का लोकसभा चुनाव जीते. विधानसभा चुनाव 2015 के लिए जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन बना तो सीट शेयरिंग का सवाल खड़ा कर श्री अनवर महागठबंधन से अलग हो गये. जानकारों की माने तो श्री अनवर को महागठबंधन से अलग होना राजनीतिक रूप से काफी महंगा पड़ा है.

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