आंगनबाड़ी केंद्रों पर नहीं दिखता सुधारअधिकतर केंद्रों पर नहीं बांटा जाता है अंडाकेंद्र पर बच्चों की उपस्थिति रहती है कमआंगनबाड़ी विकास समिति भी नहीं लेते हैं रुचिफोटो ,1,2. जहानाबाद. जिले में बाल कुपोषण दूर करने के ख्याल से आंगनबाड़ी केंद्र संचालित किया गया था. लेकिन आंगनबाड़ी केंद्रों का हाल खास्ता है. बाल कुपोषण मुक्त बिहार के नारे पर चलता समेकित बाल विकास सेवा में कहीं भी सुधार नहीं दिखता, अधिकतर जगहों पर भिन्न-भिन्न तरह की शिकायतें सुनने को मिलती है. कहीं केंद्र देर से खुलने की शिकायतें, तो कहीं बच्चों की उपस्थित नाम मात्र का देखा जाता है.लोगों की सबसे अधिक शिकायतें टीएचआर वितरण में गड़बड़ी एवं नियमों के अनुसार खाना नहीं मिलने की रहती है. हॉस्पीटल मोड़ स्थित होम्योपैथ चिकित्सक के कर्मी शौकत अंसारी इस योजना को छलावा बताते हैं. कई केंद्रों पर साप्ताहिक मेनू का बोर्ड भी नहीं लगा रहता है. बच्चों को कुपोषण से दूर करने एवं जनसंख्या के हिसाब से राज्य सरकार द्वारा कई पदों पर बहाल करने की रिक्तियां भी घोषित की जा चुकी हैं. वहीं पूर्व से चले आ रहे आंगनबाड़ी केंद्रो की स्थिति सुदृढ़ नहीं दिखती. केंद्रों पर गठित विकास समिति नाम मात्र के हैं. उन्हें केंद्रों की विधि-व्यवस्था एवं इसके सफल संचालन से कोई लेना देना नहीं होता. बताते चलें कि प्रत्येक केंद्र पर बने 13 सदस्यीय कमेटी केवल कागजी रूप से कोरम पूरा करते हैं. जिले के सदर प्रखंड में शहरी व ग्रामीण क्षेत्र मिलाकर कुल 208 आंगनबाड़ी केंद्र संचालित किया जाता है. जिसे सफल संचालन एवं नियमित देखरेख के लिए नौ पर्यवेक्षक भी नियुक्त हैं. एक पर्यवेक्षक के जिम्मे तीन-तीन पंचायतों का कार्यभार है. वहीं कई पर्यवेक्षकों के उपर 25 से भी ज्यादा केंद्रों की देखरेख का भार है. ऐसे में पर्यवेक्षक का भी अभाव दिखता है. पर्यवेक्षकों के अभाव के कारण केंद्रों की नियमित देखरेख नहीं हो पाती है. शहरी व देहाती क्षेत्रों में बने आंगनबाड़ी विकास समिति भी अपना कर्तव्य व दायित्व भूल गयी है. जानकारी के अनुसार समिति का अध्यक्ष वार्ड के निर्वाचीत सदस्य होते हैं एवं इस समिति में प्रशिक्षित नर्स , पंच, शिक्षा मित्र , टोला सेवक एवं लाभुक वर्ग से चार सदस्य मिलाकर 13 सदस्यीय समिति हुआ करता है. शहर के केंद्र संख्या 150 मोहल्ला बड़ी संगत का जायजा लिया गया. तो केंद्र पर बच्चों की उपस्थिति काफी कम थी. केंद्र पर साराजादा , साफीया, तारा, आरलिया, सहित मात्र 10 बच्चे ही उपस्थित थे. सेविका बबिता कुमारी बच्चे की उपस्थिति कम रहने के बारे में पूछे जाने पर अलग तर्क देती हैं. बताती हैं कि बच्चे आये थे चले गये. मेनू के बारे में पूछे जाने पर सोमवार को खिचड़ी, मंगलवार को पुलाव, बुधवार को खिचड़ी, गुरुवार को हलवा, शुक्रवार को खीर, एवं शनिवार को खिचड़ी बच्चों को देने की बात बतातीं है. बच्चों के अंडा वितरण के सवाल पर चुप हो जाती हैं. कुछ देर के बाद कभी-कभार वितरण करने की बात बताती हैं. लेकिन खास बात यह है कि अधिकतर केंद्रों पर विगत एक माह से बच्चों के बीच बंटने वाला अंडा को ठंडा का रोग लग गया है. वहीं पदाधिकारी भी अंडा बांटने में छुआछुत की बात स्वीकारते हैं. पदाधिकारी बताते हैं कि कार्तिक महीने में कई सेविकाओं द्वारा अंडा वितरण के सवाल पर विरोध किया गया था. इसको देखते हुए बच्चों के बीच सोयाबिन एवं बादाम बांटने का निर्देश दिया गया था. इधर बाल विकास परियोजन पदाधिकारी कुमारी उर्वशी ने शहरी क्षेत्र में बच्चों को निजी स्कूल एवं कॉन्वेंट में पढ़ने के कारण उपस्थिति कम रहने की बात बतातीं हैं एवं शहरी क्षेत्र में कम उपस्थित को देखते हुए आंगनबाड़ी केंद्रों को मिनी केंद्र बनाने के लिए वरीय पदाधिकारी को सूचित करने की बात कहीं है.
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आंगनबाड़ी केंद्रों पर नहीं दिखता सुधार
आंगनबाड़ी केंद्रों पर नहीं दिखता सुधारअधिकतर केंद्रों पर नहीं बांटा जाता है अंडाकेंद्र पर बच्चों की उपस्थिति रहती है कमआंगनबाड़ी विकास समिति भी नहीं लेते हैं रुचिफोटो ,1,2. जहानाबाद. जिले में बाल कुपोषण दूर करने के ख्याल से आंगनबाड़ी केंद्र संचालित किया गया था. लेकिन आंगनबाड़ी केंद्रों का हाल खास्ता है. बाल कुपोषण मुक्त बिहार […]
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