समय के साथ गुम हो गयी जनता धोती साड़ीअतीत के आइने में सिमटी पुश्तैनी-धंधाहाथ के हुनरों को पड़ी पूंजी की मारबाजार की मांग व उचित मजदूरी नहीं मिलने के कारण पलायन कर रहे हैं लोगफोटो- 08 जहानाबाद. विरासत अतीत का आइना है. विरासत का सरंक्षण वास्तव में अपनी अस्मिता एवं अपनी जातीय विशिष्टता की रक्षा है. विरासत की रक्षा कही न कहीं अपने अस्तित्व की रक्षा करने जैसा है. अस्सी के दशक में जिले के सदर प्रखंड का मोहनपुर गांव कुटीर उद्योग में अपनी एक अलग पहचान बनाये हुए था. लेकिन आज यह विरान सा दिखने लगा है. कभी जिले में जनता धोती -साड़ी की धूम मचाने वाला हस्तकरघा उद्योग की आवाज आज मंद पड़ गयी है. इंदिरा गांधी सरकार में शुरू की गयी जनता धोती -साड़ी की रंग समय के साथ फिकी पड़ने लगी . इसकी मांग गुम हो गयी है. हस्तकरघा उद्योग से गुलजार करीब दो सौ परिवारों की आवाज आज कुंद पड़ गयी है. हस्तकरघा उद्योग के हुनरमंदों को पूंजी की मार पड़ गयी है. गांव के हुनरमंद पूंजी के अभाव में मेरठ, मानपुर, सेफादउरा जेपी आश्रम, वारसलीगंज आदि दूसरे जगहों पर जाकर अपना जलवा बिखेर रहे हैं. उचित मजदूरी नहीं मिलने के कारण सैकड़ों परिवारों ने इस व्यवसाय से अपना मुंह मोड़ लिया है. गांधी बुनकर सहयोग समिति के सदस्य व बुनकर मनउअर अंसारी बताते हैं कि पूंजी का अभाव व सीमित कमाई के कारण लोग दूसरे धंधे में लग गये हैं. कम कमाई व ज्यादा मेहनत लगने के कारण आज के युवा कपड़ा बुनने का काम पसंद नहीं करते हैं. काम की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन कर जाते हैं. बताया जाता है कि जिले के फौलादपुर, कानर, मोहनपुर, कुुर्था, राजेपुर, गंगापुर, बदहर, काको, बीबीपुर, सुलतानी, एवं जहानाबाद शहर के जाफरगंज आदि जगहों पर हस्तकरघा उद्योग एवं हैंडलुम कपड़ा बनाने का काम किया जाता था. लेकिन आज सभी जगहों पर यह मृतप्राय है. बुनकर नुर मोहम्मद, कलीम तोफिक आदि कई लोगों ने बताया कि वर्ष 1980 में करीब 150 हैंडलुम से खादी व कपड़ा बुना जाता था. जो आज की स्थिति में इक्के दुक्के रह गये हैं. तोफिक बताते हैं कि खादी भंडार के माध्यम से दो हैंडलुम चलाया जा रहा है. बुनकर बताते हैं कि साढ़े ग्यारह मीटर (एक थान) कपड़ा बुनने में तीन व्यक्ति को पूरा दिन लग जाता है. लेकिन मजदूरी के रूप में खादी भंडार द्वारा मात्र दो सौ रुपया मिलते हैं जो आज की मजदूरी की अपेक्षा बहुत कम है. बुनकर मुहम्मद इकबाल बताते हैं कि वर्ष 2006 में अपने सरकार आपके द्वार कार्यक्रम के तहत कर्मशाला सह आवास के लिए सरकार द्वारा भेजी गयी राशि 12 लाख 80 हजार , 2008 में तकनीकी कारणों से लौटा दिया गया. तत्कालीन उद्योग मंत्री अनिल कुमार ने बुनकरों को प्रोत्साहित करने के लिए साइकिल वितरण भी किया था. सुलेमान अंसारी, मो. शराफत अंसारी ने बताया कि वर्ष 1958 से ही कपड़ा बुनाई का काम चलते आ रहा है. जिसका प्रमाण हमारे पास है. 25-30 वर्ष पहले पावरलुम भी चला करता था. कलाम अंसारी सहित कई लोगों को इस बात का मलाल है कि सरकार के उद्योग विभाग द्वारा वास्तविक बुनकरों का लॉन उद्योगपति उठा लेते हैं. इन्होंने बताया वर्ष 2012 में हस्तकरघा एसेसरिज सामग्री की सरकार द्वारा भेजी गयी 25 हजार की राशि एक किस्त के भुगतान के बाद दूसरा किस्त बुनकरों को नहीं मिला.
समय के साथ गुम हो गयी जनता धोती साड़ी
समय के साथ गुम हो गयी जनता धोती साड़ीअतीत के आइने में सिमटी पुश्तैनी-धंधाहाथ के हुनरों को पड़ी पूंजी की मारबाजार की मांग व उचित मजदूरी नहीं मिलने के कारण पलायन कर रहे हैं लोगफोटो- 08 जहानाबाद. विरासत अतीत का आइना है. विरासत का सरंक्षण वास्तव में अपनी अस्मिता एवं अपनी जातीय विशिष्टता की रक्षा […]
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