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प्रार्थना के समय एचएम लड़ा रहे थे गप

जहानाबाद (नगर) : उत्क्रमित मध्य विद्यालय, सेरथुआ में जब बच्चे प्रार्थना कर रहे थे, उस समय विद्यालय के प्रधानाध्यापक उमेश प्रसाद सहित विद्यालय के सभी शिक्षक कार्यालय में बैठ गप लड़ा रहे थे. निरीक्षण में पहुंचे डीइओ बिजुली राम ने जब शिक्षकों को कार्यालय में बैठे देखा, तो इसे काफी गंभीरता से लिया. विद्यालय के […]

जहानाबाद (नगर) : उत्क्रमित मध्य विद्यालय, सेरथुआ में जब बच्चे प्रार्थना कर रहे थे, उस समय विद्यालय के प्रधानाध्यापक उमेश प्रसाद सहित विद्यालय के सभी शिक्षक कार्यालय में बैठ गप लड़ा रहे थे. निरीक्षण में पहुंचे डीइओ बिजुली राम ने जब शिक्षकों को कार्यालय में बैठे देखा, तो इसे काफी गंभीरता से लिया.

विद्यालय के एक शिक्षक मुहम्मद अरसद अली विद्यालय से अनुपस्थित मिले. डीइओ द्वारा अनुपस्थित शिक्षक तथा प्रधानाध्यापक के वेतन रोकने का आदेश दिया है. निरीक्षण के क्रम में जब डीइओ इरकी अनुसूचित जाति टोले में संचालित प्राथमिक विद्यालय में पहुंचे, तो विद्यालय को बंद पाया.

विद्यालय के आसपास खेल रहे बच्चों ने बताया कि विद्यालय दस बच्चे खुलता है और दो बजे बंद हो जाता है. डीइओ ने इसे काफी गंभीरता से लेते हुए जांच का आदेश दिया है. डीइओ द्वारा उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, टेहटा, मध्य विद्यालय, टेहटा, राजकीय कन्या मध्य विद्यालय, टेहटा का भी निरीक्षण किया गया. इस दौरान मध्य विद्यालय, टेहटा के शिक्षक दिनेश चंद्र आठ जून से ही अनुपस्थित मिले.

डीइओ द्वारा इस संबंध में प्रधानाध्यापक से स्पष्टीकरण मांगा गया है. डीइओ द्वारा प्रतिदिन विद्यालयों की जांच किये जाने से शिक्षकों में बौखलाहट है. विशेष रूप से वैसे शिक्षक, जो अक्सर विद्यालय से गायब रहते थे या वे देर से विद्यालय जाते और जल्दी विद्यालय छोड़ देते थे, वैसे शिक्षक अब नियमित रूप से विद्यालय पहुंचने लगे हैं.

हुलासगंज : प्रखंड मुख्यालय से 1.5 किमी की दूरी पर अवस्थित दावथू पंचायत के लाठ ग्राम में एक ऐतिहासिक लंबा पहलदार स्तंभ जाट है. यह 53.5 फुट लंबी व 10.8 फुट गोल है.

इसमें 16 पहल है. एक पहल की चौड़ाई आठ इंच है. यह उत्तर से दक्षिण की ओर आधा जमीन के अंदर, तो आधा सतह पर पड़ा है. पुरातत्व विशेषज्ञों के अनुसार यह महरौली (दिल्ली) का ऐतिहासिक लौह स्तंभ जैसा है. इसे संरक्षण की आवश्यकता है. सर्व प्रथम बुकानन ने इस स्तंभ की चर्चा की थी. इस महाकाय स्तंभ का निर्माण संभवत: उत्तर गुप्तकाल में किया गया होगा.

ग्रामीण सुनाते हैं अनोखी कहानी : हमलोग अपने पूर्वजों से सुनते आ रहे हैं कि इस महाकाय स्तंभ को दो राक्षसों द्वारा इस गांव के बधार के रास्ते आधी रात को ले जाया जा रहा था.

इस दौरान गांव के कुम्हार जाति द्वारा मिट्टी के बरतन बनाने से निकली आवाज सुन कर राक्षसों को अनुभव हुआ की सुबह हो गया है, तो उसे जमीन पर रख दिया, लेकिन फिर जब उसे एहसास हुआ कि अभी आधी रात ही हुई है, तो फिर से उठाने का प्रयास किया, परंतु वह उसे उठा नहीं सका.

इसके बाद राक्षसों ने गुस्सा कर उसे श्रप दिया कि यहां पर पौनिया जाति के लोग निवास नहीं करेंगे. बताया जाता है कि इसके बाद पौनिया जाति में किसी के मरने या कोई आपदा आने पर लोग गांव छोड़ कर चले गये. फिलहाल इस गांव में महज दो जाति ही भूमिहार ब्राrाण व सरोज्ञ ब्राrाण रह गये हैं. अंगरेज सरकार के समय इसे हटाने का बहुत प्रयास किया गया था, लेकिन उठाया नहीं जा सका.

इसके बाद अंगरेज सरकार ने इस स्तंभ के चारों कोने पर पिलर गाड़ कर घेराबंदी कर दी, जो आज भी विद्यमान है.

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