हरिशयनी एकादशी आज, चार महीने शयन में रहेंगे श्री हरि

एकादशी के मौके पर विशेष योग, पापों का होगा क्षय जहानाबाद : भगवान सूर्य मंगलवार की रात कर्क राशि में प्रवेश करने के साथ ही दक्षिणायन हो गये. 23 जुलाई को हरिशयनी एकादशी है, जिस दिन भगवान क्षीरसागर में योग निद्रा में चले जाते हैं और चार माह बाद देवोत्थान एकादशी के दिन जगते हैं. […]

By Prabhat Khabar Print Desk | July 23, 2018 9:14 AM
एकादशी के मौके पर विशेष योग, पापों का होगा क्षय
जहानाबाद : भगवान सूर्य मंगलवार की रात कर्क राशि में प्रवेश करने के साथ ही दक्षिणायन हो गये. 23 जुलाई को हरिशयनी एकादशी है, जिस दिन भगवान क्षीरसागर में योग निद्रा में चले जाते हैं और चार माह बाद देवोत्थान एकादशी के दिन जगते हैं. इसी के साथ चातुर्मास्य शुरू हो जायेगा. इस दौरान विवाह और मांगलिक कार्य नहीं होते हैं. इस बार का हरिशयनी एकादशी व्रत करने वालों पर प्रभु श्री हरि की विशेष कृपा होगी. इसी बीच सूर्य की कर्क, सिंह, कन्या, तुला की संक्रांति होती है.
क्या है एकादशी व्रत : ज्योतिषाचार्य पंडित राजेश्वरी मिश्र के अनुसार श्रीकृष्ण ने समस्त दुखों व त्रिविध तापों से मुक्ति दिलाने के साथ हजारों यज्ञों के अनुष्ठान की तुलना करनेवाले चारों पुरुषार्थों को सहज ही देने वाले एकादशी व्रत करने का निर्देश दिया. एकादशी व्रत-उपवास करने का बहुत महत्व होता है. हिंदू धर्म के अनुसार एकादशी व्रत करनेवाले को दशमी के दिन से ही कुछ अनिवार्य नियमों का पालन करना चाहिए.
इन नियमों का करें विशेष पालन
दशमी के दिन मांस, लहसुन, प्याज, मसूर की दाल आदि का सेवन नहीं करना चाहिए.
रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा भोग-विलास से दूर रहना चाहिए.
एकादशी के दिन प्रात: लकड़ी का दातुन न करें, नीबू, जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और अंगुली से कंठ साफ कर लें. वृक्ष से पत्ता न तोड़ें. स्वयं से गिरा हुआ पत्ता लेकर सेवन करें.
यदि यह संभव न हो तो पानी से 12 बार कुल्ला कर लें. फिर स्नानादि कर मंदिर में जाकर गीता पाठ करें या पुरोहित से गीता पाठ का श्रवण करें.
प्रण करना चाहिए कि ‘आज मैं चोर, पाखंडी और दुराचारी मनुष्यों से बात नहीं करूंगा और न ही किसी का दिल दुखाऊंगा. रात्रि को जागरण कर कीर्तन करूंगा.’
‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जाप करें. राम, कृष्ण, नारायण आदि विष्णु के सहस्त्र नाम को कंठ का भूषण बनाएं.
भगवान विष्णु का स्मरण कर प्रार्थना करें और कहे कि- हे त्रिलोकीनाथ! मेरी लाज आपके हाथ है. मुझे इस प्रण को पूरा करने की शक्ति प्रदान करना.
यदि भूलवश किसी निंदक से बात कर भी ली तो भगवान सूर्यनारायण के दर्शन कर धूप-दीप से श्री‍हरि की पूजा कर क्षमा मांग लेनी चाहिए.
एकादशी के दिन घर में झाड़ू नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि चींटी आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है. इस दिन बाल नहीं कटवाना चाहिए. न ही अधिक बोलना चाहिए.
इस दिन यथा‍शक्ति दान करना चाहिए. किसी का दिया हुआ अन्न कदापि ग्रहण न करें. दशमी के साथ मिली हुई एकादशी वृद्ध मानी जाती है.
वैष्णवों को योग्य द्वादशी मिली हुई एकादशी का व्रत करना चाहिए. त्रयोदशी आने से पूर्व व्रत का पारायण करें.
व्रतधारी को गाजर, शलजम, गोभी, पालक का सेवन नहीं करना चाहिए.
केला, आम, अंगूर, बादाम, पिस्ता आदि अमृत फलों का सेवन करें.
प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करना चाहिए.
द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को मिष्ठान्न, दक्षिणा देनी चाहिए.

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