खुली सोच से ही खुले में शौच से मुक्त होगा समाज
जमुई : जिले सहित देश में इन दिनों सरकार और ग्राम पंचायतों के लिए स्वच्छता से जुड़ी सबसे बड़ी चुनौती खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) करने की है. जहां एक ओर सरकार द्वारा स्वच्छता से जुड़े अभियान चलाकर लोगों को खुले में शौच से मुक्ति हेतु जागरूक किया जा रहा है. वहीं दूसरी ओर […]
जमुई : जिले सहित देश में इन दिनों सरकार और ग्राम पंचायतों के लिए स्वच्छता से जुड़ी सबसे बड़ी चुनौती खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) करने की है. जहां एक ओर सरकार द्वारा स्वच्छता से जुड़े अभियान चलाकर लोगों को खुले में शौच से मुक्ति हेतु जागरूक किया जा रहा है. वहीं दूसरी ओर अभी भी शहरी और ग्रामीण परिवेश में लोग बेधड़क खुले में मल-मूत्र का त्याग कर रहे हैं. गांव के तकरीबन 65 प्रतिशत लोग खुले में शौच करते हैं जिसकी वजह से मानव मल पर्यावरण को प्रदूषित करता है.
ग्रामीण परिवेश में मानव मल के उत्सर्जन से ग्रामीण समुदाय का स्वास्थ प्रतिकूल रूप से प्रभावित होता है. मानव मल में भारी संख्या में रोगों के कीटाणु होते हैं जिससे बीमारियां फैलती हैं और मानव तंत्र व भोजन में इन कीटाणुओं के प्रवेश करने की प्रबल संभावना होती है. खुले में शौच करने का प्रभाव न केवल संबंधित परिवार तक सीमित होता है, अपितु बैक्टीरिया एवं वायरस के फैलने के कारण गांव के अन्य लोग भी प्रभावित होते हैं. इसके अलावा, रोगों की संभावना प्रतिरक्षण के स्तर पर भी निर्भर होती है
जो हर व्यक्ति में अलग-अलग होता है. खुले में शौच करने से दस्त, टाइफाइट, पीलिया आदि जैसी बीमारियां फैलती है. इतना ही नहीं, विशेष रूप से बच्चों के मामले में खुले में शौच के बुरे प्रभाव, अवरुद्ध विकास, कम प्रतिरोधकता आदि के रूप में दीर्घ अवधि में दिखते हैं और ये परिणाम केवल उन लोगों तक सीमित नहीं होते हैं जो खुले में शौच करते हैं. इससे वे सभी लोग भी प्रभावित होते हैं जो उस इलाके में रहते हैं.