आइजीआइएमएस में नयी तकनीक से 15 मिनट में होगी मोतियाबिंद की सर्जरी, केवल दो घंटे बाद देख सकेंगे सब कुछ

आइजीआइएमएस में मोतियाबिंद के ऑपरेशन की विशेष सुविधा लोगों को मिलेगी. अब यहां ट्रॉपिकल फेकोमल्सीफिकेशन तकनीक मरीजों की सर्जरी की जाएगी. इस विधि से केवल 10 से 15 मिनट की सर्जरी होगी. इसके साथ ही, चश्मा पहनकर निकलने के करीब 2 घंटे बाद आंखें देखने लगेंगी.

By Prabhat Khabar Print Desk | August 10, 2022 7:13 PM

मोतियाबिंद के ऑपरेशन से पहले इंजेक्शन लगाकर सुन्न करने और बाद में पट्टी लगाने का झंझट खत्म गया है. आपको मोतियाबिंद है, तो बस ऑपरेशन थिएटर में जाएं. 20 मिनट में ऑपरेशन हो जायेगा और चश्मा पहनकर निकलने के करीब 2 घंटे बाद आंखें देखने लगेंगी. दरअसल आइजीआइएमएस के क्षेत्रीय चक्षु संस्थान (नेत्र रोग विभाग) में ट्रॉपिकल फेकोमल्सीफिकेशन तकनीक से मोतियाबिंद की सर्जरी की जा रही है. इस विधि में 10 से 15 मिनट पहले प्रोपेराकेन सॉल्ट का ड्रॉप आंख में डाला जाता है. फिर ऑपरेशन से चंद मिनट पहले ड्रॉप डाला जाता है. इसके बाद नेत्र सर्जन आसानी से सर्जरी कर देते हैं. उसके बाद पट्टी लगाने की जरूरत नहीं होती है. मरीज ओटी से निकलने के दो घंटे बाद देखने लगेंगे.

भर्ती होने की नहीं पड़ेगी जरूरत

आइजीआइएमएस के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ विद्या भूषण ने बताया कि ट्रॉपिकल फेकोमल्सीफिकेशन तकनीक मरीजों के लिए काफी फायदेमंद है. इस विधि से दो घंटे बाद ही मरीज देखने लगते हैं और मरीजों को पट्टी लगाने की जरूरत भी नहीं होती है. इतना ही नहीं मरीज को ज्यादा समय तक भर्ती करने की भी जरूरत नहीं होती है. आइजीआइएमएस प्रदेश का पहला सरकारी अस्पताल है, जहां सबसे पहले लेजर सर्जरी शुरू की गयी है. उन्होंने बताया कि संस्थान में जहां इस तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है, वहीं अब इससे भी लेटेस्ट तकनीक लायी जा रही है. इससे मरीजों के इलाज में और बेहतर सुविधा होगी. साथ ही, सर्जरी रिस्क को कम किया जाएगा.

इस तकनीक के क्या-क्या फायदे

– प्रोपेराकेन साल्ट का ड्रॉप एनेस्थीसिया की तरह काम करता है

– आंख में रक्तस्राव, दर्द नहीं होता है, यानी पेनलेस सर्जरी होती है

– हार्ट, ब्लड प्रेशर, शूगर के मरीजों के साथ बुजुर्ग ऑपरेशन फोबिया से बचते हैं

– रिकवरी तेज होती है

– 15 मिनट में ऑपरेशन हो रहा है, चश्मा निकलने के दो घंटे बाद ही देख रहे मरीज

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