Holi 2023: होली अब पहले जैसी नहीं रही. ये बात अक्सर लोगों के जुबान से आप सुनते ही होंगे. दरअसल, धरातल पर अगर देखा जाए तो वाकई में अब पहले जैसी बात होली में नहीं रही. कभी फाग गीत हर तरफ कानों में गूंजते रहते थे. लेकिन अब फाग गीत विलुप्त ही है और वो कहीं अश्लीलता में खो गये हैं. अब गांव से लेकर शहर तक के चौपालों तक पारंपरिक होली गीत पर ढोल की थाप सुनाई नहीं देती है. हर जगह होली के नाम पर फूहड़ गीत संगीत प्रस्तुत किए जाने लगे हैं.
फाग गीतों का गाना व नाचना अब विलुप्त होने के कगार पर
भंग और रंग में सराबोर होकर पूरे वर्ष के गिले शिकवे भूल ढोल मंजीरों के साथ टोली बनाकर एक-दूसरे के घर जाकर होली के एक सप्ताह पूर्व से ही फाग गीतों का गाना व नाचना अब सपना होता जा रहा है. आज से कुछ वर्ष पूर्व गांव से लेकर शहर तक के चौपाल में पारंपरिक होली गीतों में होली खेले रघुबीरा अवध में, होले खेले रघुबीरा.,''गउरा संग लिये शिवशंकर खेलत फाग.,'' ''आज बिरज में होरी रे रसिया.'' जैसे होली गीत अब सुनाई नहीं देते हैं. अब इन पारंपरिक गीतों की जगह भोंड़े, अश्लील और द्विअर्थी गानों ने अपना स्थान बना लिया है.
नहीं सुनाई दे रही फाग गीतों की धुन
ग्रामीण अंचलों में अब रंगोत्सव पर नगाड़े की थाप कम हो चुकीं हैं. पारंपरिक फाग गीत कम ही सुनाई देती है. फाग गीतों व नगाड़ों की जगह अब आधुनिक ध्वनियंत्र डीजे ने ले ली है. आधुनिकता की चकाचौंध में नगाड़ों की शोर गुम हो गयी है. अब नगाड़ों की शोर कम ही सुनने को मिलते हैं. होलिका दहन कल है. बावजूद नगाड़ों की धुन सुनाई नहीं दे रही है.
एक माह पहले ही नगाड़े बजने शुरू हो जाते थे
पूर्व में होली पर्व के एक माह पहले ही नगाड़े बजने शुरू हो जाते थे. जहां बड़ी संख्या में लोग फाग गीत गाने व बजाने के लिए एकजुट हो जाते थे, लेकिन अब वह महज होलिका दहन और इसके दूसरे दिन ही नगाड़ा की गूंज सुनाई देती है. वो भी हर जगह अब फाग गाने वाली टोली नहीं दिखती. इस वर्ष होलिका दहन मंगलवार 7 मार्च और होली 8 मार्च को है.
लोगों की मानसिकता में भी बदलाव
पहले फागुन माह आते ही बच्चे व युवा वर्ग होलिका दहन के लिए लकड़ी इकठ्ठा करने का काम शुरू कर देते थे, लेकिन अब ऐसा देखने को कम ही मिलता है. आधुनिकता के दौर के साथ-साथ लोगों की मानसिकता भी बदलती जा रही है. इसके चलते परंपराओं में बदलाव आ रहा है. पहले फागुन माह आते ही जगह-जगह फाग गीतों के लिए अलग-अलग व्यवस्था की जाती थी. नगाड़े की शोर लोगों को घर से निकलने के लिए विवश कर देते थे, लेकिन अब लोग कामकाज में व्यस्त होने के कारण समय नहीं निकाल पा रहे हैं. लिहाजा इस वर्ष भी होली पर्व की उत्साह में कमी दिखाई दे रही है.
Published By: Thakur Shaktilochan