रमजानुल मुबारकफोटो नं -2संवाददाता, गोपालगंजजिले में सेवई जमाने से बन रही है. जमाने के हिसाब से तरीके भले ही बदल गये, लेकिन जायका उसी तरह आज भी बरकरार है, बल्कि वक्त के साथ सेवइयों में मिठास घुलती गयी. तकिया की रहनेवाली 89 वर्षीया शहीदुन निशा तब और अब के दौर की गवाह हैं. उन्होंने वक्त के बहुत सारे उतार-चढ़ाव देखे हैं. सेवइयों से इनका गहरा रिश्ता है. इनके खानदान में कई पुश्तों से सेवइयों का कारोबार होता है. उन्होंने गुजरे जमाने की बातें प्रभात खबर से साझा की.शहीदुन निशा बताती हैं कि सेवइयां पहले हाथों से बनायी जाती थीं. रमजान में महिलाएं घर पर हाथों से सेवइया तैयार करती थीं. गेहूं के आटे से तैयार होती. जैसे-जैसे वक्त गुजरता गया, मशीनों के जरिये सेवइयां तैयार की जाने लगीं. पहले सेवई को तैयार करने में मशक्कत उठानी पड़ती थी. मैदा भी कोटे पर मिलता था. इतने आसानी से मैदा नहीं मिलता था. एक मशीन चलाने के लिए चार-चार आदमी की मदद लेनी पड़ती थी. सेवई को धूप में सुखाने के बाद बिक्र ी के लिए बाजार में भेजा जाता है.ईद में ऐसे बनती हैं सेवइयांसेवइयों से कई तरह के पकवान बनाये जा सकते हैं. सेवई कई तरह से तैयार की जाती है. सूखी या कीमामी, गीली सेवइयां, दूध वाली सेवइयां आदि. सेवई को धीमी आंच पर गोल्डेन कलर होने तक भुना जाता है. जितना ज्यादा भुना जायेगा, जायके में लुत्फ उतना आयेगा. इसके बाद सेवइयों में आवश्यकता अनुसार थोड़ा घी डाल कर कुछ देर तक भुना जाता है. सेवई जितनी होगी, उतनी ही चीनी पड़ेगी और उतना ही दूध डालना होगा. चीनी का पाग बना कर भुनी सेवई को उसमें डाल देते हैं. दो-चार छोटी इलाइची व लौंग भी डाल देते हैं. खोवा, मेवा आवश्यकता अनुसार मिलाया जाता है.
BREAKING NEWS
वक्त के साथ सेवई में घुलती रही मिठास
रमजानुल मुबारकफोटो नं -2संवाददाता, गोपालगंजजिले में सेवई जमाने से बन रही है. जमाने के हिसाब से तरीके भले ही बदल गये, लेकिन जायका उसी तरह आज भी बरकरार है, बल्कि वक्त के साथ सेवइयों में मिठास घुलती गयी. तकिया की रहनेवाली 89 वर्षीया शहीदुन निशा तब और अब के दौर की गवाह हैं. उन्होंने वक्त […]
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement