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अंगरेजों की आंखों की किरकिरी बन गये थे बटुकेश्वर

गोपालगंज : उम्र 96 वर्ष, सिकुड़ी त्वचा, माथे पर झुर्रियां और झुकी हुई कमर के बावजूद आजादी के दीवाने बटुकेश्वर पांडेय में वही जज्बा है. जब बात आजादी की होती है, तो इनका मन देश की अस्मिता के लिए तड़फराने लगता है. कहते हैं, मैं अब भी जंग लड़ने को तैयार हूं. आजादी के लिए […]

गोपालगंज : उम्र 96 वर्ष, सिकुड़ी त्वचा, माथे पर झुर्रियां और झुकी हुई कमर के बावजूद आजादी के दीवाने बटुकेश्वर पांडेय में वही जज्बा है. जब बात आजादी की होती है, तो इनका मन देश की अस्मिता के लिए तड़फराने लगता है. कहते हैं, मैं अब भी जंग लड़ने को तैयार हूं.
आजादी के लिए जो ज्वाला किशोरावस्था में था, वह आज भी है. वह बताते हैं वे हाइस्कूल के छात्र थे. इसी बीच भारत छोड़ो आंदोलन का आगाज हुआ. अंगरेजों को मारने की मुहिम छिड़ी थी. पांडेय जी भी छात्र जीवन को त्याग मातृभूमि के लिए आंदोलन में कूद पड़े. आजादी के दीवानों के साथ बरौली थाने में आग लगा कर पांडेय जी ने अपने आंदोलन का आगाज किया. देखते-ही-देखते अंगरेजों की आंखों की किरकिरी बन गये. सात अगस्त, 1942 को निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार सासामुसा के पास रेलवे लाइन तोड़नी थी. बटुकेश्वर ने अकेले ही रेलवे लाइन तोड़ डाली. इस ट्रेन पर अंगरेज अधिकारी जा रहा था. मिशन में कामयाब रहे.
लेकिन, पकड़े गये और गोरखपुर जेल में बंद कर दिया. आजादी मिलने पर बतौर शिक्षक उन्होंने अपनी सेवा की. वर्तमान व्यवस्था पर वे बताते हैं कि अराजकता है. भ्रष्टाचार बढ़ा है. व्यवस्था सुधर जायेगी, लेकिन युवा याद रखे यह देश उनका है. इसकी रक्षा उनका परम धर्म है. ऐसे स्वतंत्रता सेनानी को इस पावन अवसर पर कोटि-कोटि नमन.

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