10.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

सरकारी मानक से बड़ी है हमारी भूख

* रिक्शा खींचने के बाद जुटा पाते हैं डेढ़ से दो सौ रु पये गोपालगंज : टूटी झोपड़ी में पांच छोटे बच्चे, बीबी और बूढ़ी मां के साथ रहते हैं साहेब. बाबू जी दमा पीड़ित हैं. हम यहां उन्हीं के लिए उनसे कोसों दूर. इस कमर तोड़ महंगाई में खुद किसी तरह जीते हैं और […]

* रिक्शा खींचने के बाद जुटा पाते हैं डेढ़ से दो सौ रु पये

गोपालगंज : टूटी झोपड़ी में पांच छोटे बच्चे, बीबी और बूढ़ी मां के साथ रहते हैं साहेब. बाबू जी दमा पीड़ित हैं. हम यहां उन्हीं के लिए उनसे कोसों दूर. इस कमर तोड़ महंगाई में खुद किसी तरह जीते हैं और बस जिंदा रहने के लिए पेट ही भर पाते हैं. अपनी जिंदगी तो नरक बन ही चुकी है, बस ख्वाब यह कि बच्चों का जीवन सुधर जाये, लेकिन यह हो भी तो कैसे. दवा तक के पैसे नहीं बचते. कैसे पढ़ाएं और किस प्रकार उनका जीवन स्तर ऊपर उठाएं.

वर्तमान स्थिति में इस प्रकार की बात ही बेमानी-सी लगती है. अब तो हर पल भगवान से यही विनती है कि घर में कोई और दूसरा बीमार न पड़ जाये. दरअसल केंद्र सरकार के गरीबी के नये मानक (ग्रामीण क्षेत्र में 27.20 रु पये और शहरी क्षेत्र में 33.30 रु पये रोजाना कमानेवाला गरीबी रेखा से ऊपर) बनाये जाने के बाद कुछ इस तरह के शब्द अचानक ही उस सुखराम के मुंह से निकल पड़े, जो कटेया के एक छोटे-से गांव से यहां आकर किराये के रिक्शे के सहारे अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करते हैं. दरअसल नाम तो इनका सुखराम है.

लेकिन जिंदगी से सुख कोसों दूर. सामने पानी जैसी दाल, चावल, सूखी सब्जी और पापड़ जैसी रोटी अर्थात 30 रुपये के एक थाल भोजन की तरफ इशारा करते हुए सहसा ही बोल पड़ते हैं कि पूरा दिन रिक्शा खींचने के बाद बमुश्किल डेढ़ से दो सौ रुपये ही जुट पाते हैं साहेब, जिसमें एक दिन का रिक्शे का भाड़ा 60 रुपये देने के बाद जो बचता है, उसमें जीने भर के लिए कम-से -कम 30 रुपये थाली के हिसाब से दो वक्त का भोजन हो पाता है. रात सड़क किनारे गुजरती है.

बाकी बचे पैसे में यहां से कोसों दूर रह रहे पूरे परिवार का जिम्मा. ऐसे में कैसे जीते हैं, यह तो हम ही जानते हैं. ऊपर से लाल कार्ड (गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वालों के लिए सस्ता राशन उपलब्ध कराने वाला कार्ड) ही हम जैसे गरीब परिवारों का एक बड़ा सहारा है, जो आने वाले पिछले कुछ सरकारी आंकड़ों के खेल से अब हाथ से दूर जाता दिख रहा है.

ऐसे में इस तरह के मानक से तो जिंदगी पर पहाड़ ही टूट पड़ेगा. सड़क किनारे स्थित टेंट के होटल में सुखराम के साथ बगल में बैठे मजदूरी करनेवाले राजकुमार तो यहां तक कहते हैं कि लगता है कि देश में अब गरीबों को जीने का हक ही नहीं. सिर्फ सुखराम और राज कुमार ही नहीं, इनके जैसे हजारों परिवार ऐसे हैं, जिनका जीवन गरीबी-अमीरी को लेकर सरकार के इस नये मानक से प्रभावित होता दिख रहा है. 30 रुपये थाली के भोजन से भी दूरी बना शहर में सत्तू के सहारे जीने वाले वाले रिक्शा, ठेलागाड़ी चालक कौलेश्वर और रामचंद्र की कहानी भी कुछ ऐसी ही है.

चरम पर पहुंच चुकी महंगाई में गरीबी और अमीरी के इस नये मानक के लिहाज से जिंदगी की गाडी बढ़ाने की बात पर उनका दर्द उनकी आंखों में उतर आता है. बोल पड़ते हैं कि परिवार के लिए दो पैसे बचाने के लिए रोजाना एक वक्त सत्तू से ही पेट भरना पड़ता हैं. इनका मानना है कि ऐसे आंकड़े दिखा कर सरकार गरीबों के साथ मजाक कर रही है. इससे सिर्फऔर सिर्फ गरीबों का शोषण ही होगा. ऐसे में पहले से ही रोड पर गुजर-बसर कर रहे गरीब का जीवन दिनों-दिन बदतर होता चला जायेगा.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें