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Pitru Paksha 2022: ’12 वें दिन गया सिर वेदी पर श्राद्ध का विधान है’, इसी पर कर्मकांड करते हैं पिंडदानी

Pitru Paksha 2022- पितृपक्ष मेले के 12 वें दिन सबसे पहले गया सिर वेदी पर पिंडदान का विधान है. यह वेदी स्थल विष्णुपद मंदिर के दक्षिण दिशा स्थित एक कोने पर अवस्थित है. सिर वेदी में दंड स्पर्श कराकर पिंडदान का कर्मकांड पूरा किया गया.

गया. देश सहित पूरी दुनिया में पितरों की मुक्ति धाम के रूप में स्थापित मोक्ष धाम यानी गयाजी में नौ सितंबर से शुरू त्रिपाक्षिक पितृपक्ष मेले के 12 वें दिन सबसे पहले गया सिर वेदी पर पिंडदान का विधान है. यह वेदी स्थल विष्णुपद मंदिर के दक्षिण दिशा स्थित एक कोने पर अवस्थित है. विधान के तहत इस मेले में देश के विभिन्न राज्यों से आये हजारों श्रद्धालुओं ने अपने पितरों के साथ स्वयं की भी मुक्ति के लिए पिंडदान व श्राद्धकर्म का कर्मकांड अपने कुल पंडा के निर्देशन में संपन्न किया.

’12 वें दिन गया सिर वेदी पर श्राद्ध का विधान है’

श्री विष्णुपद मंदिर प्रबंधकारिणी समिति के कार्यकारी अध्यक्ष शंभू लाल बिठ्ठल ने बताया कि 17 दिवसीय पितृपक्ष मेले के 12 वें दिन गया सिर वेदी पर श्राद्ध का विधान है. उन्होंने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार काफी श्रद्धालुओं ने मंगलवार को पितरों के साथ-साथ संतान प्राप्ति व स्वयं की भी मुक्ति के लिए गया सिर वेदी में दंड स्पर्श कराकर पिंडदान का कर्मकांड पूरा किया. उन्होंने पुराणों की चर्चा करते हुए बताया कि राजा विशाल को इस वेदी पर श्राद्ध करने से संतान सुख की प्राप्ति हुई थी. गया सिर वेदी स्थल के पास अवस्थित गया कूप वेदी पर भी काफी पिंडदानियों ने अपने पितरों की मुक्ति व मोक्ष प्राप्ति के निमित्त पिंडदान का कर्मकांड किया.

‘सुर के सिर भाग पर अवस्थित है’

शंभू लाल बिठ्ठल ने बताया कि ये दोनों वेदी स्थल गया सुर के सिर भाग पर अवस्थित है. ब्रह्मा जी द्वारा इस स्थल पर यज्ञ किये जाने से इसे काफी पवित्र माना गया है. कूर्म पुराण के अनुसार इन वेदी स्थलों पर पिंडदान करनेवाले श्रद्धालुओं के मातृ व पितृ कुल के सात गोत्रों का उद्धार हो जाता है. इधर पितृपक्ष मेले में एक दिन के पिंडदान के निमित्त पहुंचे देश के विभिन्न राज्यों के हजारों श्रद्धालुओं ने फल्गु नदी, विष्णुपद, देवघाट, सीता कुंड अक्षय वट वेदी स्थलों पर पितरों की मुक्ति व मोक्ष प्राप्ति के निमित्त पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण का कर्मकांड अपने कुल पुरोहित के निर्देशन में पूरा किया.

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