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हाइकोर्ट के सवाल पर पंडा समाज की दो टूक, मंदिर नहीं, वेदी है विष्णुपद

गया पाल तीर्थ वृत्ति सुधारिणी सभा से जुड़े पंडा समाज के कई लोगों ने वायु पुराण सहित अन्य धार्मिक ग्रंथों का जिक्र करते हुए कहा कि विष्णुपद की मान्यता एक वेदी के रूप में आदि काल से चली आ रही है. वेदी स्थल होने के कारण ही भगवान श्रीराम सहित कई राजा व अन्य देवी-देवता अपने पितरों का पिंडदान कर चुके हैं.

गया : पटना हाइकोर्ट ने राज्य सरकार से सात सितंबर तक यह बताने को कहा है कि विष्णुपद मंदिर सार्वजनिक है या किसी विशेष वर्ग का. गौरव कुमार सिंह द्वारा दायर जनहित याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई करते हुए यह जानकारी मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायाधीश एस कुमार की खंडपीठ ने मांगी है. इधर, इस मामले में विष्णुपद को पंडा समाज मंदिर नहीं मानता है. उन्होंने इस स्थान को वेदी की मान्यता दी है. उनका मानना है कि वेदी स्थल काे सार्वजनिक करना अनुचित है.

वायु पुराण सहित अन्य धार्मिक ग्रंथों में जिक्र

गया पाल तीर्थ वृत्ति सुधारिणी सभा से जुड़े पंडा समाज के कई लोगों ने वायु पुराण सहित अन्य धार्मिक ग्रंथों का जिक्र करते हुए कहा कि विष्णुपद की मान्यता एक वेदी के रूप में आदि काल से चली आ रही है. वेदी स्थल होने के कारण ही भगवान श्रीराम सहित कई राजा व अन्य देवी-देवता अपने पितरों का पिंडदान कर चुके हैं. यदि विष्णुपद की मान्यता मंदिर की होती, तो पिंडदान की जगह पूजा-अर्चना की चर्चा होती. उनका कहना है कि विष्णुपद वेदी को मंदिर की श्रेणी में लाने का जिनके द्वारा भी प्रयास किया जा रहा है, पूरी तरह सत्य से परे है.

पंडा समाज के जीविकोपार्जन का साधन

वेदी स्थल होने के कारण यह पंडा समाज के जीविकोपार्जन का साधन है. यही कारण है कि विष्णुपद वेदी व इससे जुड़ी संपत्तियों की देखरेख की जिम्मेदारी प्राचीन काल से पंडा समाज के पास ही है. इसे सार्वजनिक मंदिर की मान्यता देने को लेकर धार्मिक न्यास बोर्ड द्वारा न्यायालय में दो बार पहले भी मामला दर्ज कराया गया था. लेकिन, दोनों बार श्रीविष्णुपद मंदिर प्रबंधकारिणी समिति के पक्ष में ही फैसला सुनाया गया. पंडा समाज के कई लोगों ने कहा कि न्यायालय का फैसला इसी सत्य के पक्ष में होना तय है. गौरतलब है कि गौरव कुमार सिंह द्वारा विष्णुपद मंदिर व इससे जुड़ी संपत्तियों को सार्वजनिक घोषित करने को लेकर उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की गयी है. बीते दिनों इस मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश संजय करोल व न्यायाधीश एस कुमार की खंडपीठ ने राज्य सरकार से इस मंदिर से संबंधित जानकारी मांगी है.

कहते हैं प्रबंधकारिणी समिति के अध्यक्ष

श्री विष्णुपद मंदिर प्रबंधकारिणी समिति, गया के अध्यक्ष कन्हैयालाल मिश्र कहते हैं कि विष्णुपद वेदी है. इसके पक्ष में पटना उच्च न्यायालय द्वारा दो बार फैसला दिया जा चुका है. पहली बार 1975 में व दूसरी बार 1992 में. धार्मिक न्यास बोर्ड द्वारा इस मामले को लाया गया था, जिस पर दोनों बार श्री विष्णुपद मंदिर प्रबंध करने के पक्ष में फैसला आया. इसी प्रकार पंडाजी रंजीत भईया ने कहा कि वायु पुराण, गया महात्मय सहित सभी पौराणिक व धार्मिक ग्रंथों में विष्णुपद को वेदी कहा गया है. किसी भी धार्मिक ग्रंथ में विष्णुपद को मंदिर नहीं कहा गया है.

क्या कहते हैं पंडा जी

पंडित गोपाल लाल महतो ने कहा कि विश्व के सभी धर्म स्थल सार्वजनिक हैं, क्योंकि वहां पूजा-पाठ होता है. लेकिन, विष्णुपद में पिंडदान का कर्मकांड आदि काल से चला आ रहा है. विष्णुपद वेदी है न कि मंदिर.वहीं पांडाजी दामोदर गोस्वामी ने कहा कि विष्णुपद वेदी है यह जगजाहिर है. यदि यह वेदी नहीं होता, तो इससे पहले भी इस मामले को न्यायालय में लाया गया था जो फैसला श्री विष्णुपद मंदिर प्रबंधकारिणी समिति के पक्ष में आया था.पंडाजी प्रमोद मेहरवार ने भी कहा कि मंदिर में पिंडदान व श्राद्धकर्म नहीं किया जाता है. केवल वेदी स्थल पर ही पिंडदान व श्राद्धकर्म का विधान है. विष्णुपद वेदी है, इसीलिए प्राचीन काल से यहां पिंडदान व श्राद्ध कर्म करने की परंपरा रही है.

posted by ashish jha

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