गया: आधुनिक हिंदी साहित्य के महानतम लेखकों में एक अमरकांत के निधन से साहित्य व समाज में जो स्थान खाली हुआ है उसकी भरपाई संभव नहीं है. लोगों के दुखों व संघर्षो का जो वर्णन उनके साहित्य में मिलता है वह और कहीं नहीं मिलता है. उनके लेखन में जनवादिता स्पष्ट झलकती है. प्रेमचंद परंपरा के इस लेखक का नहीं होना समाज को लंबे समय तक खलेगा.
ये बातें जनवादी लेखक संघ (जलेस) व प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस) की ओर से आयोजित संयुक्त शोकसभा में साहित्यकारों ने कहीं. जनवादी लेखक संघ के सचिव सत्येंद्र कुमार व प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष कृष्ण कुमार ने कहा कि आधुनिकता में न बहते हुए अमरकांत ने रचनाओं के लिए वहीं भूमि चुनी जिसमें वह जी रहे थे. उन्होंने अपनी कहानी व उपन्यासों के माध्यम से समाज में व्याप्त पाखंड, क्रूरता व स्वार्थ की प्रवृत्तियों के प्रति पाठक की चेतना को जाग्रत करना व एक स्वस्थ सामाजिक जीवन की ललक पैदा करने का प्रयास किया.
‘डिप्टी कलक्टरी’ व ‘जिंदगी और जोंक’ जैसी दर्जनों विश्व स्तर की कहानियां लिख कर उन्होंने जीवन की विडंबनाओं का चित्रण किया. शोक सभा में दोनों संगठनों के साहित्यकारों में कृष्ण चंद्र चौधरी, हरेंद्र गिरि शाद के अलावा अजय कुमार, कुमार कांत, अनिल कुमार, अन्नपूर्णा श्रीवास्तव, परमाणु कुमार, नीतू सिंह, अरूण कुमार आदि मौजूद थे.