सूर्याेपासना का जीवंत केंद्र है गयाजीयुगाें-युगाें से जंबूद्वीप में सनातन धर्म का परचम लहराते भारतीय तीर्थाें में गयाजी का अलग स्थान है. गया जिला क्षेत्र के पुरातन पुरास्थलाें का पीरभ्रमण, प्राच्य विवरण व उपलब्ध साक्ष्य से यह स्पष्ट हाेता है कि आदिकाल से गया ब्राह्मणाें की पुण्यस्थली रहा है, जिनके पथिक सूर्यपूजन में निष्णात थे. इतिहासकार जगदीशचंद्र घाेष गया काे सूर्यपूजन की आदि भूमि निरुपित करते हैं, ताे सर आरसी भंडारकर गाेविंदपुर से प्राप्त अभिलेख काे मार्गधन के लिपि अंकन पर अपना मत व्यक्त करते हुए लिखते हैं कि बहुत संभव है कि शुरू-शुरू में गया सूर्यपूजन का ही केंद्र रहा हाे. गयाजी में सूर्यपूजन के उच्च सत्ता का बाेध शुंग काल से हाेने लगा है, जाे समृद्धि की चरम सीमा पर पाल काल आते-आते पहुंच गया. न सिर्फ गया, वरन इसके चातुर्दिक प्राच्य स्थलाें में सूर्य विग्रह की बड़ी-छाेटी कृति उपलब्ध है, जाे इस बात का प्रमाण है कि यहां सूर्य सत्ता की ज्याेति सदैव प्रज्जवलित रही व इसकी अस्मिता हरेक कालखंड में विद्यमान रही. भारतीय कलाकाराें ने सूर्य मूर्ति निर्माण में प्राय: चपटी टाेपी, ऊर्णा, गले का कंठा व मणि, कमल, कमरबद्ध, रथ व जूते का प्रयाेग किया है, इस क्षेत्र के मूर्त्त विग्रहाें पर उनका स्पष्ट अंकन है. जिलेभर में जहां-जहां सूर्य मंदिर है, उनमें कुतलुपुर, खनेटू, डबूर, केसपा, पाली, दधपा, दुब्बा-भुरहा, कुर्किहार, ताराडीह, चिलाेर, नगमागढ़, काबर, तारापुर, राैनागढ़, काेची, पलुहड़ गढ़, कचनावां, अगंधा, पुनावां, जमदीगढ़, मलठिया, दादू-बरमा आदि का नाम लिया जा सकता है.इनमें कहीं-कहीं ताे सूर्य विग्रह उपेक्षित हैं. ऐसे कुछ स्थानाें में प्राप्त विग्रह उपेक्षित हैं. ऐसे कुछ स्थानाें में प्राप्त विग्रह के बाद देवालय बना दिये गये. इनमें बजाैरागढ़, पलहद, बाला बिगहा, देवकली, घुरियावां, सुंगारिश, लक्ष्मण बिगहा, साेनपुर, मैगरा, गुरुआ आदि का नाम है. गया के नगर क्षेत्र में श्रीसूर्य नारायण के विग्रह की अधिकता फल्गु किनारे है. लेकिन, इसके साथ-साथ अक्षयवट, गाेदावरी, जगन्नाथ मंदिर व ब्रह्मयाेनि के पाद क्षेत्र में सूर्य पूजन के प्राच्य स्थान हैं. गया नगर में अवस्थित ब्राह्मणी घाट की विशाल सूर्य प्रतिमा राज्य में सबसे विशाल है. श्रीविष्णुपद में तीन सूर्य विग्रह आज भी पूजित हैं, जाे निर्माण कला के पाल युग का प्रतिनिधित्व करते हैं. गया-बाेधगया से प्राप्त सूर्य मूर्ति न सिर्फ गया, बाेधगया, पटना, नवादा व नालंदा के संग्रहालय में वरन काेलकाता व दिल्ली में भी प्रदर्शित हैं. काेलकाता के राष्ट्रीय भारतीय संग्रहालय के म्यूजियाेलॉजिस्ट रहे डॉ अजय कुमार उपाध्याय ने बताया है कि गया क्षेत्र से प्राप्त सूर्य विग्रह भारतीय मूर्ति कला का एक विशिष्ट अध्याय है, जिस पर अभी आैर शाेध सर्वेक्षण जरूरी है. ध्यान देने की बात है कि देश में प्रारंभिक काल में सूर्य प्रतिमा बनी जाे बाेधगया के एक वेदिका स्तंभ पर आज भी चित्रित देखा जा सकता है. गया क्षेत्र से प्राप्त अथवा देवालयाें में विराजमान इन विग्रहाें का मुखमंडल व मूर्त आभा आकर्षक व प्रेरणादायी है, जाे आधे फुट से करीब सात फुट तक लंबा है. ग्रामीण क्षेत्राें में सर्वाधिक विशाल विग्रह खनेटू में है, ताे नगर में ब्राह्मणी घाट में. सूर्यकुंड के प्रधान द्वार के नीचे के घाट के किनारे भी एक उत्कृष्ट पर खंडित सूर्य प्रतिमा देखी जा सकती है. इसकी उपरी अलंकरण काेणार्क के सूर्य विग्रह के एकदम समान है. यही मंदिर के बाहरी कक्ष में सूर्य यंत्र का एक फलक पूजित है. इसके अलावा भी गया में सूर्य विग्रह स्थान-स्थान पर के तीर्थाें में विराजमान हैं. इस तरह गयाजी सूर्याेपासना का अप्रतीम व गाैरवपूर्ण है. -डॉ राकेश कुमार सिन्हा रवि
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सूर्योपासना का जीवंत केंद्र है गयाजी
सूर्याेपासना का जीवंत केंद्र है गयाजीयुगाें-युगाें से जंबूद्वीप में सनातन धर्म का परचम लहराते भारतीय तीर्थाें में गयाजी का अलग स्थान है. गया जिला क्षेत्र के पुरातन पुरास्थलाें का पीरभ्रमण, प्राच्य विवरण व उपलब्ध साक्ष्य से यह स्पष्ट हाेता है कि आदिकाल से गया ब्राह्मणाें की पुण्यस्थली रहा है, जिनके पथिक सूर्यपूजन में निष्णात थे. […]
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