छठ व्रत से धन, आरोग्य व पुत्र लाभषष्ठी माता व सूर्य भगवान की संयुक्त उपासना छठ व्रत में होती है. कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सायंकाल अस्ताचलगामी सूर्य की लालिमा में षष्ठी माता की भावना करके सूर्यार्घ्य प्रदान किया जाता है. दूसरे दिन उदयकालीन सूर्य की लालिमा में षष्ठी माता की भावना करके दूसरा अर्घ प्रदान किया जाता है. मिट्टी के दो टुकड़ों में षष्ठी माता व सूर्य का एक साथ पूजन होता है. सभी प्रसाद जोड़ा संख्या में अर्पित किये जाते हैं. मुख्य प्रसाद ठेकुआ में सूर्य के रथ का चक्र चिह्नित रहता है. अर्घ व पूजन में एक ही वस्त्र धारण करना सूर्य षष्ठी व्रत की विशेषता है. उक्त व्रत का शुभारंभ सर्वप्रधान च्यवन ऋषि की पत्नी सुकन्या ने किया था. नाग कन्या के उपदेश से इसने व्रत करके अपने नेत्रहीन पति को निरोग व नेत्रयुक्त किया. उक्त बातें भविष्योत्तर पुराण में वर्णित है. इस व्रत के आचरण से पांडव पत्नी द्रोपदी को खोया हुआ राज्य व धन प्राप्त हुआ था. ब्रह्मवैतर्त पुराण के अनुसार, राजा प्रियव्रत की पत्नी मालिनी का मृत पुत्र षष्ठी माता की कृपा से जीवित हुआ था और दीर्घायु हुआ था. षष्ठी माता पुत्र देती हैं व उसे दीर्घायु करती हैं. सूर्य भगवान आरोग्य पुत्र व धन प्रदान करते हैं. मगध सम्राट जरासंध के पूर्वज का कुष्ठ निवारण छठ व्रत से ही हुआ था.सौर उपासना का स्थल गयाधाम विशेष रूप से है. यहां सूर्य का प्राचीन व पाैराणिक विग्रह के अनेक स्थल हैं. उत्तरमानस स्थित शीतला मंदिर में उत्तरार्क सूर्य ब्रह्मा स्वरूप में, दक्षिण मानस सूर्य कुंड पर दक्षिणार्क सूर्य विष्णु स्वरूप में व ब्राह्मणी घाट में विरिंचिनारायण सूर्य शंकर स्वरूप में हैं. गया के नाम पर गयादित्य पौराणिक विग्रह है तथा सूर्य की 12 कलाएं 12 विग्रह में ब्राह्मणी घाट पर स्थित हैं. अन्य स्थलों पर भी सूर्य के विग्रह हैं. सूर्य पुत्र शनैश्चर व सूर्य पुत्र यमराज के साथ सूर्य की आदमकद प्रतिमा ब्राह्मणी घाट में उपलब्ध है. -आचार्य लाल भूषण मिश्र याज्ञिक
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छठ व्रत से धन, आरोग्य व पुत्र लाभ
छठ व्रत से धन, आरोग्य व पुत्र लाभषष्ठी माता व सूर्य भगवान की संयुक्त उपासना छठ व्रत में होती है. कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सायंकाल अस्ताचलगामी सूर्य की लालिमा में षष्ठी माता की भावना करके सूर्यार्घ्य प्रदान किया जाता है. दूसरे दिन उदयकालीन सूर्य की लालिमा में षष्ठी माता की भावना करके दूसरा अर्घ प्रदान […]
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