12 मई रविवार को वैशाख शुक्ल द्वितीया तिथि के बाद तृतीय तिथि प्रकोष काल में व्याप्त है. इसी बेला में भगवान विष्णु ने रेणुका के गर्भ से परशुराम रूप में अवतार ग्रहण किया था. श्रीमद्भागवत महापुराण के आधार पर भगवान के 24 अवतारों में श्री परशुराम 16वां अवतार हैं. जमदग्नि के पुत्र परशुराम सात चिरंजीवियों में एक हैं.
ऐसी मान्यता है कि महेंद्र पर्वत पर संप्रति विराजमान हैं. परशुराम जी ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे. इनको भगवान शंकर से अमोघ परशु (फलसा) प्राप्त हुआ था. दुष्ट राजाओं की संख्या अधिक हो जाने पर उनका संहार करने के लिए भगवान विष्णु के अंशावतार परशुराम प्रकट हुए थे.
कहते हैं कि दुष्टों के पाप से दबी हुई पृथ्वी का भार उतारने के लिए ही इनका अवतार हुआ था. परशुराम की अनुपस्थिति में उनके पिता जमदग्नि के बलपूर्वक कामधेनु को सहस्त्रजरुन ने हरण कर लिया था, किंतु जमदग्नि पुत्र परशुराम ने सहस्त्रजरुन को मार कर कामधेनु को आश्रम में वापस लौटाया था. प्रतिक्रिया में सहस्त्रजरुन के पुत्रों ने जमदग्नि की हत्या कर दी.
इससे क्रोधित परशुराम ने पिता के वध को निमित्त बना कर 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय हीन किया. परशुराम का क्रोध रामावतार होने पर भगवान श्री राम के वचनों को सुन कर बिल्कुल शांत हुआ. कहा जाता है कि विभिन्न स्थानों पर आश्रय लेते हुए अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य व परशुराम अभी भी धरती पर विराजमान हैं.