गया: पितृमुक्ति का परमधाम गयाजी में भादो शुक्ल पक्ष के चतुर्दशी से लेकर आश्विन कृष्ण पक्ष के अमावस्या तक चलनेवाला पितृपक्ष मेला का शुक्रवार को औपचारिक समापन हो गया. आधिकारिक तौर पर मंच से इसकी घोषणा कर दी गयी. लेकिन, 17 दिनों तक गयाजी में रहकर श्रद्ध कार्य करनेवाले को आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गायत्री घाट में बगैर पिंडदान किये श्रद्धकार्य संपन्न नहीं माना जाता है.
आम तौर पर अक्षयवट में पिंडदान व रुक्मिणी सरोवर में तर्पण के साथ पितृपक्ष मेले का समापन आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या को हुआ माना जाता है. इस वजह से शुक्रवार को सुबह से ही अक्षयवट में पिंडदानियों की भारी भीड़ लगी थी. पंडाजी बताते हैं कि अक्षयवट में पितरों को दिया गया पिंड व भोजन का क्षय नहीं होता है.
यहां पंडाजी को किया गया दान का क्षय नहीं होता. पितृपक्ष में पितृलोक से भू-लोक पर आये पितर दान पाकर खुश होकर पितृलोक को वापस हो जाते हैं. मौजूद पंडाजी ने पिंडदानियों को पीठ ठोक कर सुफल प्रदान किया. पुराणों में चर्चा है कि दुनिया में पांच अक्षयवट हैं, जिसकी जड़ें एक दूसरे से जुड़ी हैं. इनमें काशी से लेकर श्रीलंका तक अक्षयवट की जड़ें फैली हैं.