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बेलगाम हो गये हैं जूनियर डॉक्टर!

गया: अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एएनएमएमसीएच) के जूनियर डॉक्टर बेलगाम हो गये लगते हैं. इनके सामने अस्पताल प्रशासन लाचार है. जूनियर डॉक्टर सुरक्षा के बहाने आये दिन बार-बार चिकित्सा व्यवस्था को प्रभावित करते हैं. कभी इमरजेंसी ड्यूटी का बहिष्कार कर, तो कभी हड़ताल कर. पिछले सालभर में कई बार वे ऐसा कर चुके […]

गया: अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एएनएमएमसीएच) के जूनियर डॉक्टर बेलगाम हो गये लगते हैं. इनके सामने अस्पताल प्रशासन लाचार है. जूनियर डॉक्टर सुरक्षा के बहाने आये दिन बार-बार चिकित्सा व्यवस्था को प्रभावित करते हैं. कभी इमरजेंसी ड्यूटी का बहिष्कार कर, तो कभी हड़ताल कर. पिछले सालभर में कई बार वे ऐसा कर चुके हैं. पर, हैरत की बात यह है कि न तो इनकी मांगों पर ध्यान दिया जाता है और ना ही इनके खिलाफ कार्रवाई होती है. वे हर बार अस्पताल प्रशासन पर वे भारी पड़ते हैं. गौरतलब है कि जूनियर डॉक्टर कभी अस्पताल कुप्रबंधन के खिलाफ, तो कभी कॉलेज प्रशासन के, कभी मरीज के परिजनों को पीट कर, तो कभी उनसे पीटे जाने पर हंगामा करते हैं. पर, इस समस्या का कोई समाधान नहीं ढूंढ़ा जा सका है. इसकी कीमत मरीजों को जान गंवा कर चुकानी पड़ती है. आखिर कब और कैसे रुकेगा यह सिलसिला? किसी के पास इसका जवाब नहीं है.

क्या कर रहा प्रशासन?
अस्पताल अधीक्षक डॉ सीताराम प्रसाद हर बार की तरह इस बार भी जिला प्रशासन व स्वास्थ्य निदेशालय को सूचना देकर अपने कर्तव्यों का इतिश्री मान लिये हैं. करीब चार साल पूर्व से ही अस्पताल में बर्न आइसीयू की सुविधा विभाग ने मुहैया करा रखी है, लेकिन 24 घंटे बिजली उपलब्ध नहीं होने के कारण वह बेकार पड़ा है. बताया जाता है कि इस बीच बर्न आइसीयू से कई सामान व उपकरणों की चोरी हो गयी है.

परिजनों के साथ मारपीट
बर्न आइसीयू की सुविधा मांगने पर मरीज के परिजनों के साथ मारपीट किसी भी तरह न्यायसंगत नहीं माना जा सकता है. यह कोई पहली घटना नहीं है कि अस्पताल में इलाज कराने आये मरीजों के परिजनों के साथ मारपीट की घटना हुई हो. इससे पूर्व इसी तरह की वारदात पूर्व मंत्री सुरेंद्र प्रसाद यादव व उनके परिजनों के साथ हुई थी. तब से अब तक दर्जन से अधिक बार मारपीट की घटनाएं हो चुकी हैं. जब-जब मारपीट हुई है, जूनियर डॉक्टर हड़ताल को हथियार बना लेते हैं. अस्पताल में स्वास्थ्य सेवा को ठप कर देते हैं.

पर हैरत इस बात की है कि इसमें वे आसानी से कामयाब हो जाते हैं. बिल्कुल बेरोकटोक. आमलोगों का मानना है कि इसमें अस्पताल प्रशासन की भी मौन सहमति रहती है. शायद यही कारण है कि ऐसी घटनाओं के जिम्मेवार लोगों की न तो पहचान की जाती है और ना ही उनके खिलाफ कार्रवाई. इससे अस्पताल की छवि धूमिल हो रही है. बाहर टूटने-फूटने का इलाज कराने के लिए मेडिकल कॉलेज पहुंचनेवालों के सामने अस्पताल में आये दिन होनेवाले मलयुद्ध के दौरान शरीर के बाकी बचे अंगों के भी टूटने-फूटने की जोखिम बढ़ जाती है.

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