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भाजपा से अकेले मुकाबला था मुश्किल

गया: जदयू, राजद व सपा के महाविलय पर जिस तरह शीर्ष नेता एकमत हो रहे हैं, उससे अब वह दिन दूर नहीं, जब एक पार्टी व एक चुनाव चिह्न् होगा. ऐसे में जिलों में भी पार्टियों के नेताओं व कार्यकर्ताओं का दल व दिल एक हो, इस पर चर्चा हर गली, नुक्कड़ व चौक-चौराहे में […]

गया: जदयू, राजद व सपा के महाविलय पर जिस तरह शीर्ष नेता एकमत हो रहे हैं, उससे अब वह दिन दूर नहीं, जब एक पार्टी व एक चुनाव चिह्न् होगा. ऐसे में जिलों में भी पार्टियों के नेताओं व कार्यकर्ताओं का दल व दिल एक हो, इस पर चर्चा हर गली, नुक्कड़ व चौक-चौराहे में होने लगी है. इन दिनों राजनीतिक गलियारे में चर्चा का मुख्य बिंदु बस यही है.
अब जब पार्टियों के शीर्ष नेता गिले-शिकवे भुला कर एक होने की बात कर रहे हैं, तो भला निचले स्तर पर एकता से कैसे टाला जा सकता है. लेकिन, ग्रास रूट लेवल के कार्यकर्ताओं को यह चिंता जरूर सताने लगी है कि जो थोड़ा-बहुत चांस मिलने की उम्मीद भी थी, वह धुंधली पड़ती दिखायी दे रही है. लेकिन, शीर्ष नेताओं के आगे उनका भला क्या चलनेवाला है. जदयू के जिलाध्यक्ष अभय कुशवाहा ने कहा कि विकल्प तो कुछ है नहीं. लालू प्रसाद का राजनीतिक कैरियर लगभग समाप्त होने को है. नीतीश जी के नेतृत्व में उनका उत्तराधिकारी उभरेगा, तो अच्छा रहेगा.

संसदीय चुनाव का आकलन करें, तो दूसरे दल का भाजपा से अकेले चुनाव लड़ना कठिन हो गया है. सांप्रदायिक ताकतों से लड़ना है, तो महाविलय जरूरी है. पार्टी में सिर्फ चुनाव लड़ना ही मकसद नहीं होता, त्याग भी करना पड़ता है. महाविलय के साथ कांग्रेस व सीपीआइ का गंठजोड़ होगा, तो गया में उनके दो सीटों को छोड़ कर बाकी आठ पर महाविलय के बाद नयी पार्टी चुनाव लड़ेगी. इससे मंशा पाले कई लोगों को झटका लगेगा. लेकिन, सरकार बनने के बाद पार्टी के पास कई बोर्ड व कमेटियां होती हैं, जहां उनलोगों को सम्मानजनक पद व प्रतिष्ठा मिल सकता है. संगठन में भी कई महत्वपूर्ण पद होंगे. ऐसे में उन लोगों को निराश होने की जरूरत नहीं है. एक बड़ी पार्टी हो जायेगी. सच तो यह है कि कार्यकर्ताओं में महाविलय लेकर उत्साह है.

उधर, राजद अध्यक्ष राधेश्याम प्रसाद ने कहा कि शीर्ष नेताओं के फैसले का वह सम्मान व स्वागत करते हैं. सांप्रदायिक ताकतों को बिहार में आने से रोकने के लिए यह जरूरी था. अभी जदयू-राजद को मिला दें, तो गया में विधानसभा के 10 में छह सीटों पर दोनों दलों के विधायक हैं. जब कोई दल ही नहीं रहेगा. विलय होकर एक हो जायेगा, तो फिर जदयू, राजद, सपा का सवाल ही कहां? तीनों मिल कर मजबूत प्रत्याशी देंगे. अब देखना है वरीय स्तर पर पार्टी की संरचना कैसी बनती है? जो पार्टी के सच्चे सिपाही हैं, वह हर चीज छोड़ सिद्धांत की राजनीति करते हैं. दल व दिल एक हो गया है. एक सवाल पर ठिठकते हुए कहा कि हां, टिकट मांगने तो लालूजी के पास ही जायेंगे. वर्षो तक उनके यहां काम किया है, तो मजदूरी किससे मांगेगे.

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