गया: नगर निगम के 53 वार्डो में से 29 वार्डो में पार्षद पद पर महिलाएं काबिज हैं. निगम का सर्वोच्च पद ‘मेयर’ भी महिला ही हैं. यानी नगर सरकार में महिलाओं का दबदबा है. लेकिन, इसे शहर का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि नगर सरकार को चलाने वाली इन महिला प्रतिनिधियों को ही शहर की महिलाओं की सुविधाओं का ख्याल नहीं है.
यूं तो शहर में कई समस्याएं हैं, लेकिन ‘प्रभात खबर’ आपका ध्यान एक अहम मसले की तरफ खींचना चाह रहा है. दरअसल, हम बात कर रहे हैं महिलाओं के लिए शौचालय की. इतने बड़े शहर में कहीं भी महिलाओं के लिए अलग से शौचालय की व्यवस्था नहीं है. शहर के भीड़ भाड़ वाले क्षेत्रों में कुछ शौचालय तो हैं, लेकिन वहां महिलाएं नहीं जा सकती हैं.
कारण वहां की व्यवस्था है. हैरान करने वाली बात है कि इतने अहम मसले पर कभी भी महिला पार्षदों ने बात नहीं की. निगम की बैठकों में तमाम मुद्दों पर चर्चा होती है, लेकिन महिलाओं के लिए अलग शौचालय का ख्याल किसी भी जनप्रतिनिधि या अधिकारियों को नहीं आया. निगम प्रशासन के आंकड़ों के अनुसार, शहर में महिलाओं की आबादी दो लाख 20 हजार 218 है. क्या इतनी बड़ी आबादी नगर सरकार का हिस्सा नहीं है? क्या यह शहर की महिला मतदाताओं के प्रति अन्याय नहीं है? ऐसे में नगर सरकार में महिलाओं की आधी भागीदारी देने का औचित्य ही क्या रह जाता है? क्या महिलाओं के लिए शहर की एक बड़ी समस्या नहीं है?