बोधगया: निर्विकारता का होना ही बुद्ध है. सिद्धार्थ व्यक्ति है. शुद्धार्थ निर्विकारता का होना है. ये बातें गुरुवार को संत श्री मोरारी बापू ने बोधगया के कालचक्र मैदान में चल रही रामकथा के दौरान कहीं.
मोरारी बापू ने कहा कि मानस व्याकरण का नहीं, आचरण का ग्रंथ है. उन्होंने गयाजी को परम तीर्थ कहा व फल्गु की स्वच्छता व पवित्रता पर ध्यान देने की बात कही. तीर्थ बाहर से स्वच्छ हो और भीतर से पवित्र. उन्होंने कहा कि मगह में मुक्ति नहीं मिलती. मुक्ति के लिए भूमि की नहीं, भूमिका की जरूरत है. बुद्ध प्राप्ति पर चर्चा करते हुए बापू ने कहा कि ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रयास की जरूरत है, बोध प्राप्ति के लिए नहीं. प्रयास किया कि परस्पर प्रीति की गयी तो बोधगया. क्रोध, विरोध व अवरोध आया तो बोधगया. यहां तक कि निर्विचार के लिए विचार किया तो बोधगया. रामायण का एक दोहा-‘खल प्रबोध, जल शोध, मन को निरोध, कुल सोध, करहिं ते फोटक पची मरहिं, सपनेहूं सुख न सुबोध.’ पर विचार करते हुए उन्होंने कहा कि मैं आपको सुधारने, नहीं स्वीकारने आया हूं. आज उपदेशक की नहीं, प्रेमी की जरूरत है. बुद्ध बहुत कम बोले. उन्होंने करुणा दी. जग का शोधन व्यर्थ है, जग को स्वीकार करो. बालक को प्रबोध करो, परंतु नहीं मानें तो प्यार करो. मन को संतों ने निरोध नहीं किया, बल्कि प्यार किया. मन परमात्मा की विभूति है. आज शाप नहीं चाहिए, मोहब्बत चाहिए. उन्होंने कहा-‘रामहिं केवल प्रेम प्यारा, प्राण लेहिं सो जान निहारा.’
संत श्री ने कहा कि ज्ञान के लिए प्रयत्न की जरूरत है, भक्ति के लिए नहीं. ज्ञान में सभी जिम्मेदारी साधक की होती है. भक्त तो परमात्मा पर पूर्ण आश्रित होता है. वृक्ष अपने हरे होने की शिकायत नहीं करता. नदी बहने की शिकायत नहीं करती. फूल अपने रंगों की शिकायत नहीं करता, परंतु हम रात-दिन शिकायत करते हैं. बुद्ध पुरुष इसी तरह से प्रकृति की तरह जीता है.
एक बुद्ध पुरुष जाता है, पूरी पृथ्वी विधवा हो जाती है. आज संसार को युद्ध की नहीं, बुद्ध की जरूरत है. बुद्ध, इसलाम, जैन सभी अपने रास्ते से जायें, इसमें कठिनाई क्या है? हर जगह, हर रास्ते में वही अस्तित्व व्याप्त है. उन्होंने कहा बुद्धत्व वहां है, जहां मन, वचन व कर्म से ईष्र्या न हो. मानस के अनुसार ‘परम धर्म श्रुति विदित अहिंसा, पर निंदा सम अघ्न गरिशा.’ बुद्ध पुरुष अपने शरीर की भी निंदा नहीं करता. इसी दौरान उन्होंने सर्वधर्म प्रार्थना से संबंधित गीत गवाया. बुद्धं शरणम गच्छामि, वाहे गुरु, अल्लाहु , सत्यम-शिवम-सुंदरम्, राम-कृष्ण-हरि के साथ सत श्री अकाल, बोले सो निहाल का जयकार लगाया. रामकथा के दौरान उन्होंने अहिल्या प्रसंग की व्याख्या की और कहा कि जगत में भूल सबसे होती है, अगर जीवन में अपराध बोध फलित हो जाये, तो उसे क्षमा कर देना चाहिए. युवकों को ऐसे अपराध के लिए हताश, व निराश नहीं होना चाहिए. इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास जी अहिल्या प्रसंग में शाप वश कहते हैं, पाप वश नहीं कहते और अहिल्या जब पावन हो सकती है, तो हम पावन क्यों नहीं हो सकते. आज की कथा राम, लक्ष्मण व विश्वामित्र के जनकपुर पहुंचने तक की हुई. शुक्रवार को धनुष यज्ञ प्रसंग व सीता स्वयंवर की चर्चा होगी.