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अध्यात्म व विज्ञान का संयोग समझें

गया : अध्यात्म और विज्ञान के संयोग को समझना होगा. बुद्ध ने विज्ञान की कसौटी पर ही अध्यात्म की व्याख्या की है. यह संयोग व सौभाग्य ही है कि मुङो भगवान विष्णु व बुद्ध के प्रकाश स्थल पर बैठ कर रामकथा सुनाने का अवसर मिला है. ये उद्गार हैं संत मोरारी बापू के. वह शनिवार […]

गया : अध्यात्म और विज्ञान के संयोग को समझना होगा. बुद्ध ने विज्ञान की कसौटी पर ही अध्यात्म की व्याख्या की है. यह संयोग व सौभाग्य ही है कि मुङो भगवान विष्णु व बुद्ध के प्रकाश स्थल पर बैठ कर रामकथा सुनाने का अवसर मिला है. ये उद्गार हैं संत मोरारी बापू के. वह शनिवार को बोधगया के कालचक्र मैदान में श्री रामकथा प्रेमयज्ञ समिति के तत्वावधान में आयोजित नौ दिवसीय रामकथा में प्रवचन कर रहे थे.

श्री बापू ने कहा कि शुक्रवार को गया आने के बाद उन्होंने सबसे पहले भगवान विष्णु के चरण चिह्न् को स्पर्श किया. महाबोधि मंदिर जाने की इच्छा थी, लेकिन पता चला कि द्वार बंद हो चुके हैं. शनिवार की सुबह मौका मिला.

महाबोधि मंदिर के गर्भगृह में भगवान शंकर का शिवलिंग है. सामने ही भगवान जगन्नाथ का मंदिर व आदिगुरु शंकराचार्य का मठ. यह धर्म का समन्वय ही तो है. यहां सभी बौद्ध मठों के बौद्ध भिक्षु, द्वारिकापुरी मठ के स्वामी श्री केशवानंद जी महाराज, बोधगया शंकराचार्य मठ के महंत, सनातन धर्मो के आचार्य उपस्थित हैं. इन सबके बीच प्रबुद्ध श्रोता. धर्मो का यही समन्वय गया व बोधगया की धरती को पावन बनाता है. गया श्रद्धा व भक्ति का पावन तीर्थ है. भगवान के 24 अवतारों में भगवान बुद्ध दशावतार हैं. बुद्ध ने कड़ी तपस्या की. बहुत घूमे भी. प्रवचन के दौरान श्री बापू ने कहा व्यक्ति को सबसे पहले अपने शरीर का स्थूल अवलोकन करना चाहिए.

देखना और अवलोकन करना दोनों अलग-अलग बातें हैं. इनमें काफी अंतर है. अवलोकन करने का तात्पर्य यह नहीं कि आप अपने शरीर को दर्पण में देखें. शरीर को मन के दर्पण में देखना होगा. तुलसीदास ने कहा भी है-‘बड़े भाग मानुष तन पावा..’ परमात्मा ने बड़ी करुणा से मानव देह की संरचना की है. इसे यों ही गंवाना उचित नहीं. जब आंख से नहीं दिखता, दांत गिरने लगता है. हाथ-पांव शिथिल हो जाते हैं, तो चिंता बढ़ जाती है. आपने इसका अवलोकन नहीं किया.

हमें ऊर्जा को केंद्रस्थ करने की जरूरत है. मनुष्य को अपने चित्त का भी अवलोकन करना चाहिए. चित्त का शोधन करना चाहिए. मन चंचल है. वह उड़ान भरता है. उसे केंद्रित करना होगा. ‘जैसे उड़ी जहाज को पंक्षी फिर जहाज पर आवै..’ चित्त का अवलोकन करने के बाद ही अपनी चित्तवृत्ति का अवलोकन करना चाहिए. उन्होंने कहा चित्त को जब उसके योग्य जगह मिल जाती है, तो वह स्थिर हो जाता है. प्रवचन से पहले श्री मोरारी बापू ने भगवान श्री राम के चरणों में वंदना निवेदित की.

महाबोधि मंदिर प्रबंधन समिति के सचिव नंदजी दोरजी के अलावा बौद्ध धर्मगुरुओं में डॉ भंते महाथेरो सहित अन्य को वस्त्र व अर्थ भेंट कर सम्मानित भी किया. बौद्ध धर्मगुरुओं ने भी संत श्री बापू को खादा भेंट कर बोधगया की धरती पर अभिवादन किया. दीप प्रज्वलित कर रामकथा का शुभारंभ किया गया. बौद्ध मंगलाचरण के बाद सनातन आचार्यो ने पुरुषोत्तम का पाठ किया गया. डालमिया परिवार की ओर से अभिषेक डालमिया ने उनका स्वागत किया. इस अवसर पर शिव कैलाश डालमिया उर्फ मुन्ना डालमिया, शिवराम डालमिया, बादशाह डालमिया सपरिवार, डॉ अनूप केडिया, डॉ कौशलेंद्र प्रताप सिंह, डॉ राधानंद सिंह, विनोद जसपुरिया, अनिल स्वामी, उत्तम सिंह, विनोद मित्तल, डॉ कुमुद वर्मा, भोला मिश्र व लालमणि सिंह आदि मौजूद थे.

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