संस्कृत के उपयोगी तत्वों को आमजन तक पहुंचाना जरूरी

संस्कृत विवि में कामेश्वर सिंह की प्रतिमा का अनावरण दरभंगा : कुलाधिपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है. संस्कृत साहित्य में सभी शास्त्र समाहित हैं. संस्कृत के उपयोगी तत्वों को आमजन तक पहुंचाना जरूरी है. उन्होंने शिक्षकों को सुझाव दिया कि इसे प्रचारित करने के साथ ही संस्कृत […]

By Prabhat Khabar Print Desk | March 22, 2017 5:22 AM

संस्कृत विवि में कामेश्वर सिंह की प्रतिमा का अनावरण

दरभंगा : कुलाधिपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि संस्कृत भाषा भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है. संस्कृत साहित्य में सभी शास्त्र समाहित हैं. संस्कृत के उपयोगी तत्वों को आमजन तक पहुंचाना जरूरी है. उन्होंने शिक्षकों को सुझाव दिया कि इसे प्रचारित करने के साथ ही
संस्कृत के उपयोगी
छोटे-छोटे पाठ्यक्रम बनायें. ये पाठ्यक्रम रोजगार परक हों. लोगों को बताया जाय कि संस्कृत शिक्षा अर्थोपार्जन का साधन बन सकती है. यही महाराधिराज के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी. श्री कोविंद मंगलवार को संस्कृत विवि में महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह की प्रतिमा अनावरण के बाद दरबार हॉल में आयोजित समारोह में बोल रहे थे.
उन्होंने कहा कि संस्कृत में समस्त ज्ञान-विज्ञान समाहित है. इसका अनुश्रवण कर देश विश्व में शांतिदूत बन सकता है. कुलाधिपति ने संस्कृत के ज्ञान-विज्ञान को हिंदी समेत अन्य भाषाओं में अनुवाद को भी जरूरी बताया. श्री कोविंद ने कहा कि भौतिक समृद्धि के साथ-साथ नैतिक विकास भी जरूरी है. ज्ञान उपार्जन के तौर-तरीके बदल रहे हैं. संस्कृत शिक्षा में भी इसका उपयोग किया जाना चाहिए. इससे पहले श्री कोविंद ने महाराजाधिराज सर कामेश्वर सिंह की प्रतिमा अनावरण के साथ संस्कृत विवि के क्रीड़ाशाला व परीक्षा भवन का उद्घाटन किया.
शिक्षा में महाराजाधिराज की अवदान का उल्लेख करते हुए श्री कोविंद ने कहा कि देश के अधिकांश राजे-रजवाड़ों ने अपने राजमहलों में होटल व रेस्तरां खोला, जबकि कामेश्वर सिंह ने अपना राजमहल संस्कृत विश्वविद्यालय को दान में दे दिया. यह सोच उन्हें महापुरुष की श्रेणी में पहुंचा देती है. स्वाधीनता संग्राम में भी उन्होंने अभूतपूर्व भूमिका निभाई है.
कुलपति प्रो. विद्याधर मिश्र की अध्यक्षता व डीएसडब्ल्यू प्रो. श्रीपति त्रिपाठी के संचालन में कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस दौरान लनामिवि के कुलपति प्रो. राजकिशोर झा, विधायक संजय सरावगी, पूर्व कुलपति डॉ देवनारायण झा मंचासीन थे.
तन के साथ मन से भी सुंदर थे महाराजाधिराज
कुलाधिपति ने कहा कि महाराज तन के साथ मन से भी सुंदर थे. स्वाधीनता मिलने के बाद देश में 560 रियासतें थी. सरदार पटेल के प्रयास से देश का एकीकरण हुआ. इसके बाद कई रजवाड़े विदेश चले गये. कुछ ने अपने राजमहल में होटल-रेस्तरां खोल दिया. कई तो आज भी राजमहल में रह रहे हैं. वहीं, दरभंगा महाराज अपना राजमहल संस्कृत विवि को दान में देकर दूसरे जगह रहने लगे. यह मिथिला की विशेषता को दर्शाता है.

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