दरभंगा : यूं तो जीवन में उत्साह बढ़ाने के लिए ही उत्सव का आयोजन होता है, लेकिन होली अन्य उत्सवों से कुछ ज्यादा ही उत्साह का संचार करता है. यह इकलौता पर्व है, जिसमें न केवल वर्ग विभेद मिट जाता है, बल्कि उम्र का दायरा भी सिमट जाता है. इस त्योहार की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी गायन है. मिथिला में इसकी बड़ी प्राचीन परंपरा रही है. इसके महत्व को इसी से समझा जा सकता है कि वसंत पंचमी के दिन से ही होली गायन शुरू हो जाता है.
भगवती सरस्वती को अबीर अर्पित कर गुलाल उड़ने लगते हैं. आधुनिकता की बयार तथा रोजगार के अवसर नहीं रहने के कारण सूने पड़े गांव में अब डंफे की थाप की स्वर मद्धम पड़ते जा रहे हैं. साल-दर-साल यह परंपरा कमजोर पड़ती जा रही है. हालांकि अभी भी कई ऐसे गांव हैं, जिसने इस महत्वपूर्ण सांस्कृतिक कड़ी को बचाये रखा है. इसके भविष्य की कड़ी टूटती नजर आ रही है. कारण नयी पीढ़ी होली गायन की परंपरा से दूर होती जा रही है. फिल्मी गीत तथा होली विशेष पर निकलने वाले एलबम के गानों पर इनका उत्साह छलकता दिखता है. संस्कृति प्रेमियों के लिए यह चिंता का विषय है.