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काम पर लौटे जूनियर डॉक्टर

रात आठ बजे डीएम के लिखित आश्वासन के बाद हड़ताल समाप्त जूनियर चिकित्सकों के हड़ताल पर रहने से मरीज परेशान, चरमरायी स्वास्थ्य व्यवस्था दरभंगा : सुरक्षा मांग को लेकर जूनियर चिकित्सकों के हड़ताल पर चले जाने से डीएमसीएच की स्वास्थ्य सेवा ठप हो गयी है. चिकित्सा सुविधा के लिए दूर-दराज से पहुंचने वाले मरीजों को […]

रात आठ बजे डीएम के लिखित आश्वासन के बाद हड़ताल समाप्त
जूनियर चिकित्सकों के हड़ताल पर रहने से मरीज परेशान, चरमरायी स्वास्थ्य व्यवस्था
दरभंगा : सुरक्षा मांग को लेकर जूनियर चिकित्सकों के हड़ताल पर चले जाने से डीएमसीएच की स्वास्थ्य सेवा ठप हो गयी है. चिकित्सा सुविधा के लिए दूर-दराज से पहुंचने वाले मरीजों को निराशा हाथ लगी. बिना उपचार कराये उन्हें वापस लौटना पड़ा. गुरुवार को हजारों मरीज अपना इलाज कराने डीएमसीएच पहुंचे. अस्पताल में कार्य ठप देख उन्हें अन्य जगह जाना पड़ा.
इमरजेंसी विभाग में जहां गंभीर अवस्था में मरीज पहुंचते हैं, वहां की भी चिकित्सा सेवा ठप रही. मरीजों को भरती नहीं किया जा रहा था. सुबह ही बड़ी संख्या में जूनियर चिकित्सक सभी विभागों में घूमने के बाद आपातकालीन विभाग के बाहर बैठ गये. जेडीए के सदस्य सुरक्षा, इमरजेंसी में कम संख्या में मरीज के परिजन का प्रवेश, सजर्री ओटी शुरू करने तथा आरोपितों की गिरफ्तारी की मांग कर रहे थे.
हड़ताल खत्म करने के लिए डीएमसी के प्राचार्य डॉ आरके सिन्हा, प्रभारी अस्पताल अधीक्षक डॉ संतोष मिश्र, उपाधीक्षक डॉ बालेश्वर सागर सहित कई विभागाध्यक्ष व वरीय चिकित्सक पहुंचे, लेकिन जेडीए के सदस्य अपनी मांग पर अड़े रहे. बता दें कि 20 मई के रात्रि में एक मरीज की मौत के बाद परिजनों ने हंगामा किया था. बात चिकित्सकों व परिजन के मारपीट तक पहुंचा. इसे लेकर जूनियर चिकित्सक आक्रोशित होकर जेडीए के बैनर तले अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गये.
खामियाजा भुगतने को मरीज विवश
डीएमसीएच में हड़ताल का खामियाजा बेकसूर गरीब मरीजों को भुगतना पड़ता है. लोगों की मानें तो अस्पताल में अधिकतर गरीब मरीज ही इलाज कराने आते हैं. हड़ताल के समय इन मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ता है.
सभी दूर-सुदूर क्षेत्र से अपना समुचित इलाज कराने की आस लगाये अस्पताल पहुंचते हैं. आने के बाद इलाज नहीं होने पर मरीजों के दिल पर क्या गुजरती है, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है. बता दें कि डीएमसीएच उत्तर बिहार का सबसे बड़ा चिकित्सा संस्थान हैं. दूर-दूर यहां तक कि पड़ोसी राष्ट्र नेपाल से भी मरीज इलाज कराने यहां पहुंचते हैं.
वार्ता रही विफल
डीएमसी के प्राचार्य डॉ आरके सिन्हा, प्रभारी अस्पताल अधीक्षक डॉ संतोष कुमार मिश्र, उपाधीक्षक डॉ बालेश्वर सागर सहित विभागाध्यक्ष तथा वरीय चिकित्सकों की ओर से जूनियर चिकित्सकों से की गयी वात्र्ता विफल रही. उनका कहना था कि जबतक उनकी मांगें पूरी नहीं की जायेगी वे आम पर नहीं लौटेंगे.
पुलिस व सुरक्षाकर्मी पर भी उठ रही अंगुली
डीएमसीएच के सुरक्षा व्यवस्था में लगभग आठ दर्जन सुरक्षाकर्मी लगे रहते हैं. शिफ्ट के अनुसार इन गार्डो की ड्यूटी लगायी जाती है. वहीं बेंता ओपी के अधिकारी व जवान लगे रहते हैं.
इमरजेंसी विभाग में बने कैदी वार्ड में पुलिस अधिकारी व जवान तैनात रहते हैं. बेंता ओपी प्रभारी भी बराबर परिसर के इर्द-गिर्द नजर आ जाते हैं. इन सभी के रहने के बावजूद आये दिन मारपीट की घटना घट जाती है. सूत्रों के अनुसार बेंता ओपी प्रभारी तथा पुलिस के जवान भी घटना के कुछ दिन बाद लापरवाह हो जाते हैं. घटना के समय यह कहां गायब रहते हैं यह भी सोचने का विषय है. अब सच्चाई क्या है, इसके लिए तो जांच की आवश्यकता है.

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