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नालियों में ढूंढ़ रहीं सोना-चांदी

विनोद कुमार गिरि, दरभंगा पचहत्तर साल की फूलवंती देवी नालियों के गंदे पानी के कचरे को उठाकर चलनी से छान रही है. वह उसमें अपनी किस्मत ढूंढ रही है. ऐसा नहीं कि वह एक दो दिन से ऐसा कर रही है. बल्कि पिछले तीन साल से दरभंगा शहर की तमाम गलियों की नालियों की वह […]

विनोद कुमार गिरि, दरभंगा
पचहत्तर साल की फूलवंती देवी नालियों के गंदे पानी के कचरे को उठाकर चलनी से छान रही है. वह उसमें अपनी किस्मत ढूंढ रही है. ऐसा नहीं कि वह एक दो दिन से ऐसा कर रही है.
बल्कि पिछले तीन साल से दरभंगा शहर की तमाम गलियों की नालियों की वह खाक छान चुकी है. उसके साथ सुनीता भी है, जो पैंतीस साल की है. संगीता भी है, जो 32 साल की होगी. छोटे छोटे बच्चे भी है. उन सभी का काम सिर्फ और सिर्फ गंदे नालियों में अपनी किस्मत को ढूंढ़ना है. यह किस्मत सोने चांदी, हीरे जवाहरात हो सकता है.
तांबा, पीतल भी हो सकता है. जिसे लोग अनुपयोगी मानकर फेंक देते हैं. घर में झाड़ू लगाने के दौरान गलती से नाले में चला जाता है. वही समान किसी को जिंदगी दे रहा है. पेट की भूख को शांत कर रहा है. रहने के लिए ठौर दे रहा है. अर्थात उनके पूरे परिवार का भरण पोषण भी इसी नालियों की गंदगी से होता है. यों भी कह सकते हैं- हमारी गंदगी, किसी के लिए जिंदगी बन गयी है.
मध्य प्रदेश के कौशांबी के हैं सभी
शहर की नालियों के कचरे में सोना, चांदी, हीरे जवाहरात की खोज करने वाले लोग बिहार के नहीं बल्कि मध्य प्रदेश के बालाघाट जिला अंतर्गत कौशांबी के रहने वाले हैं. 75 वर्षीया फूलवंती देवी शहर के बड़ा बाजार स्थित सोनार टोली की नालियों में सुनीता, संगीता समेत अन्य दो तीन बच्चों के साथ कचरे से ठोस पदार्थ को चुन रही थी. कचरे को चलनी से छानकर उसमें काम के लायक वस्तुओं को रख लेती है. पूछने पर वह कहती है कि पिछले तीन साल से इस शहर में रहकर नालियों के कचरे से अपने परिवार की गाड़ी को खींच रही है.
सिर्फ वह अकेले नहीं बल्कि पूरे परिवार के साथ यह काम करती है. यह उसका पेशा है. करीब चालीस से अधिक लोग उसके साथ हैं जिनका यही कार्य है. उनके गांव के अधिकांश लोग भी इसी को अपनी जीविका का माध्यम बना चुके हैं. जो बिहार के दरभंगा समेत कई शहरों के गलियों की नालियों की खाक छान रहे हैं. संगीता ने कहा – बढ़िया से परिवार चल जाता है.
कोई दिक्कत नहीं है. यह पूछे जाने पर कि एक दिन में कितनी आय हो जाती होगी. इस पर उसने कहा कि यह कोई जरुरी नहीं है. किसी दिन दो चार सौ रुपये का सामान भी हो जाता है तो किसी दिन पांच दस हजार रुपये की लॉटरी भी लग जाती है. यह तो किस्मत पर है.
सोनारपट्टी मोहल्लों की नालियों पर विशेष नजर
नालियों में सोने चांदी समेत अन्य बेशकीमती सामान को ढूंढ़ने वाले लोगों की खास नजर सोनारपट्टी की नालियों की होती है. अन्य मुहल्ले में भले ही वह महीने दो महीने में एक बार नालियों की खाक छानती हो परंतु सोनारपट्टी मोहल्लो ंकी नालियों में सप्ताह में एक दिन जरुर खाक छानती मिल जायेंगी. इस बात को फूलवंती भी स्वीकार करती है. इसके अलावा नदी या तालाब के किनारे फेंके गये कचरों में भी यह इस तरह के पदार्थ को ढूंढते हुए मिल जायेगी.

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