।। नवेंदु शेखर पाठक ।।
दरभंगा : सुना करती थी, मौत चुपके से आती है. अपनी आगोश में ले लेती है. मेरे सामने भी मौत खड़ी थी. सामने क्या कहें, चारों ओर से उसने मुझे घेर लिया था. हर-पल वह मेरे करीब आ रही थी. मैंने भी बचने की उम्मीद छोड़ दी थी.
मौत को ही नियति मान लिया. अब भी यकीन नहीं हो रहा कि मैं जीवित हूं. यह कहते-कहते 78 वर्षीया शैल देवी की आंखें बंद हो गयीं. दोनों हाथ आपस में जुड़ गये. इसके लिए उन्होंने ईश्वर के प्रति कृतज्ञता अर्पित की. कहा कि ऊपर वाले के आशीर्वाद तथा परिजनों के प्रेम की वजह से ही मैं सकुशल लौट सकी.
केदारनाथ के दर्शन के लिए परिजनों के साथ उत्तराखंड गयी हनुमाननगर प्रखंड की मुखिया शैल देवी जल प्रलय में घिर गयीं थीं. पांच दिनों तक निराहार रहकर भी मौत को मात देकर अपने घर लौटने के बाद उन्होंने आप बीती कुछ इस तरह सुनायीं – अपने पति भाकपा के पूर्व राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य विमल कांत चौधरी, बेटी सरोजा देवी तथा दामाद दयानंद मिश्र के साथ 15 जून को केदारनाथ के दर्शन के लिए गौरीकुंड पहुंची. गौरीकुंड से आगे गाड़ी नहीं जाती है. मेरे लिए पिट्ठू कर दिया गया.
पिट्ठू चढ़ाई चढ़ने लगा. अपराह्न 3 बजे बरसात होने लगी. अंधेरा छा गया. इसी दौरान अपने पति व बच्चों से मैं बिछड़ गयी. तीन बजे दिन में ऐसा घुप अंधेरा था कि टॉर्च भी काम नहीं कर रहा था. पिट्ठू के साथ मैं रास्ते में रूक गयी. 16 जून की सुबह बाबा केदारनाथ की पूजा-अर्चना की. हालांकि हमारे लिये वहीं एक रेस्ट हाउस में रूम बुक था, पर मुझे याद नहीं रहा. गौरीकुंड में गाड़ी छोड़ी थी. सोचा वहीं सभी लोग मिलेंगे. इसलिए नीचे उतरने लगी.
2-3 किलोमीटर नीचे उतरी कि सुबह 8 बजे बादल फट गया. पानी का समुद्र- सा बहने लगा. उस धार में आदमी, जानवर, पेड़, सामान सब बहते हुए देखा. आगे पुल ध्वस्त हो चुका था. पिट्ठू मुझे लेकर जंगल की ओर दौड़ पड़ा. जंगल के रास्ते रामवाड़ा पहुंचाया. वहां का पुल भी टूट गया था. वहीं पत्थर पर बैठकर पूरी रात गुजारी. भगवान को अर्पित करने के बाद थोड़ा सा अक्षत (अरबा चावल) बचा था, उसे ही फांक कर भूख मिटाने की कोशिश की.
17 जून की सुबह पिट्ठू ने रामवाड़ा के पानी की प्रचंड धार से निकलने की सलाह दी. मेरी आंखों के सामने उस धार से गुजरनेवाले बहे जा रहे थे. मैंने मना कर दिया. फिर दलदल होकर आगे बढ़ने को कहा. मौत निश्चित मान मैं बढ़ी. कंधे तक मेरा पूरा शरीर दलदल में धंस गया. बगल गिरे पेड़ को मैंने पकड़ लिया. भला हो उस पिट्ठू का जिसने दौड़कर दूसरे पिट्ठू को तलाश कर बुलाया. दोनों ने मिलकर मुझे दलदल से निकाला. इसके बाद फिर पानी की धार से निकलने की जिद करने लगे.
मैंने मना कर दिया. कहा- आप जाइये, अपनी जान बचाइये. मुझे तो मरना है ही. पिट्ठू चला गया. रात भर मैं वहीं अकेले बैठी रही. खाना क्या, पानी भी नहीं था. आधी रात के बाद पहाड़ पर जमे बर्फ को चाटकर किसी तरह प्यास बुझाई.
18 जून की सुबह उफनते पानी का वेग थोड़ा कम हुआ. मौत तय मान मैं उसमें उतर गयी. किसी तरह पार भी हो गयी. उस पार बिना किसी लक्ष्य के आगे बढ़ने लगी. कुछ दूर चलने के बाद इनसान नजर आए. नौ लोग थे. उनके साथी काल का निवाला बन चुके थे. वे सभी बिहार के ही थी. उनके पास मोबाइल भी था, पर काम नहीं कर रहा था. उनलोगों की टोली में मैं भी शामिल हो गयी. हेलीकॉप्टर से गिरे भोजन-पानी वे लोग लाते, मुझे भी देते, कभी एक बिस्कुट मिलता तो कभी एक घूंट पानी. इसी के सहारे भूख-प्यास मिटाने का प्रयास करती रही.
जंगल के रास्ते 19 जून को हम जंगलचट्टी पहुंचे. वहां कुछ देर के लिए मोबाइल का टावर मिला. मुझे सिर्फ अपने एक पुत्र संजीव चौधरी का नंबर याद था. उसी पर फोन किया. मेरे बेटे ने वहीं रुकने की बात बता खुद वहां पहुंचने की बात कही, पर अकेले रुकने की जगह मैं उनलोगों के साथ जंगल के रास्ते आगे विदा हो गयी. किसी तरह गौरी गांव पहुंची.
21 जून को सेना का हेलीकॉप्टर आया. वह हमें गुप्तकाशी ले आया. हेलीकॉप्टर से उतरते ही किसी ने मुझे गोद में उठा लिया. नाचने लगा. मुझे कुछ दिख नहीं रहा था. सिर्फ कान में यह आवाज पड़ रही थी, ‘मां मिल गयी, मां मिल गयी.’ बाद में मैने जाना कि वह मेरी बेटी के दामाद अमलेश मिश्र थे. मेरे लापता होने के बाद मेरी तलाश में वे सिंगापुर से यहां पहुंचे थे.
मेरा बेटा संजीव मुझे ढ़ूंढ़ने के लिए गौरीकुंड रवाना होने से पहले उन्हें यहां छोड़ गया था. मैं बच गयी. परिजनों से मिल गयी. घर लौट आयी, पर अभी भी यकीन नहीं हो रहा कि मैं सही में जीवित हूं. ईश्वर की अनुकंपा ही है कि सकुशल अपने परिवार के बीच लौट आयी.
श्रीमती शैल ने कहा कि सामने खड़े व्यक्ति के मरने, पानी में डूबने, लाशों के बीच रात गुजारने जैसा भयानक मंजर अभी भी मेरी आंखों के सामने नाच रहा है. इस घटना ने न केवल मुझे मौत का एहसास कराया, बल्कि वस्तुओं की अहमियत भी समझा गयी. सोने की अंगूठी व चेन देने के बाद भी मुझे एक बिस्कुट नहीं मिल सका.