200 मृत कुएं होंगे पुनर्जीवित

वर्ष 1901 के नक्शे के आधार पर सूची तैयार शहर के 200 कुओं में80 फीसदी हैं निजी जलापूर्ति-जल संग्रह का प्रमुख जरिया था कुआं दरभंगा : तालाबों के शहर के रूप में मशहूर निगम क्षेत्र के लोग गहराये जलसंकट के कारण बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं. प्रकृति से छेड़छाड़ के कारण मौसम की […]

By Prabhat Khabar Print Desk | June 25, 2019 1:28 AM

वर्ष 1901 के नक्शे के आधार पर सूची तैयार

शहर के 200 कुओं में80 फीसदी हैं निजी
जलापूर्ति-जल संग्रह का प्रमुख जरिया था कुआं
दरभंगा : तालाबों के शहर के रूप में मशहूर निगम क्षेत्र के लोग गहराये जलसंकट के कारण बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं. प्रकृति से छेड़छाड़ के कारण मौसम की बेरूखी व पूर्वजों क सोच से उलट आधुनिकता के दौर में पुरानी व्यवस्था को दरकिनार करने का खामियाजा आज सभी भुगत रहे हैं. आने वाले दिनों में जलसंकट की स्थिति के और विकराल रूप धारण करने के आसार को देखते हुए सरकार पुराने दौड़ की व्यवस्था को पुनर्जीवित करने के प्रयास में जुट गयी है.
एक ओर पोखरों की उड़ाही करायी जा रही है, तो दूसरी ओर अब मृत हो चुके कुंआ की तलाश कर उसे फिर से जिंदा करने की कवायद आरंभ हो गयी है. बता दें कि जलसंकट को लेकर प्रदेश की विशेष शाखा के पुलिस अधीक्षक ने सभी क्षेत्रीय पुलिस अधीक्षक व सभी जिला विशेष शाखा पदाधिकारी को फैक्स भेज सार्वजनिक कुंआ की सूची संबंधी अद्यतन प्रतिवेदन तैयार कर भेजने को कहा है. इस आलोक में निगम प्रशासन से शहरी क्षेत्र के कुआं की सूची मांगी गयी थी.
जलसंकट के कारण पर एक नजर : गहराये जलसंकट व मौसम की बेरूखी के बीच पोखर-तालाबों की संख्या घटने का सबसे बड़ा कारण अतिक्रमणकारी व भूमाफिया हैं. पेड़ लगाये जाने के बजाय धड़ल्ले से काटे जा रहे हैं. इस कारण पानी से लबालब रहने वाली बागमती नदी में अब नाम मात्र का पानी बचा है. वह भी पूरी तरह प्रदूषित है. वहीं कुआं को सुविधाभोगी प्रवृत्ति व एक-एक इंच जमीन के व्यवसायिक उपयोग की सोच ने लील लिया. इक्का-दुक्का कुएं बचे हैं, जो उपयोग में नहीं रहने तथा रख-रखाव के अभाव में अपना अस्तित्व खो चुके हैं.प्राय: इतिहास बन चुके कुआं को नयी जिंदगी देकर इतिहास दुहराने की दिशा में कदम बढ़े हैं.

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