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अब सोनाचूर चावल से बनेगी बक्सर की पहचान, विभागीय स्तर पर तैयारी शुरू

बक्सर के सोनाचूर चावल को पहचान दिलाने के लिए कवायद शुरू हो गयी है. धान का कटोरा कहलाने वाला शाहाबाद क्षेत्र के बक्सर जिला को सोनाचूर चावल के उत्पादन से पहचान को लेकर विभागीय स्तर पर तैयारी शुरू कर दी गयी है.

बक्सर. बक्सर के सोनाचूर चावल को पहचान दिलाने के लिए कवायद शुरू हो गयी है. धान का कटोरा कहलाने वाला शाहाबाद क्षेत्र के बक्सर जिला को सोनाचूर चावल के उत्पादन से पहचान को लेकर विभागीय स्तर पर तैयारी शुरू कर दी गयी है. इस पहचान को लेकर आत्मा के निदेशक राजेश प्रताप सिंह ने पहल भी शुरू कर दी है. जिसे एफपीओ के माध्यम से बाजारीकरण को लेकर कार्य योजना तैयार की जा रही है.

वहीं किसानों को जोड़कर इसके लिए एफपीओ का निर्माण किया जा रहा है. जिससे जिला में उत्पादन होने वाले विशेष प्रकार के सोनाचूर चावल को ग्लोबल रूप में बाजारीकरण कर बक्सर को एक अलग पहचान दी जा सके. इस विशेष प्रकार के चावल के माध्यम से बक्सर की पहचान को लेकर जिला पदाधिकारी ने आत्मा निदेशक को उनके स्तर से हर प्रकार की सहायता देने का आश्वासन भी दिया गया है. इसके लिए बनाये गये कार्य योजना को जिले में फलीभूत कराया जा सके. चावल की प्रोडक्शन, मीलिग, पैकेजिंग की व्यवस्था की जायेगी.

जिले की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए आत्मा आत्मा द्वारा किसानों को प्रशिक्षण देने की कार्य योजना बनायी गयी है. इसकी शुरुआत भी किसान पाठशाला के माध्यम से कर दी गयी है. जिससे संबंधित प्रखंड के किसानों को अपेक्षित सहयोग प्राप्त हो सके और कृषि के क्षेत्र में बेहतर उत्पादन को लेकर उन्हें सहयोग प्राप्त हो सके.

इस कार्य योजना के तहत सिमरी, ब्रह्मपुर, चक्की प्रखंडों में विशेष तौर पर आलू उत्पादन को लेकर किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है. इसकी अत्याधुनिक ट्रेनिंग दी जा रही है. जिससे वे आलू का बेहतर व ज्यादा से ज्यादा उत्पादन कर सकें.

वही राजपुर, नवानगर एवं इटाढ़ी प्रखंडों में मेंथा की खेती को लेकर किया गया है. जहां किसानों द्वारा पारंपरिक खेती के अतिरिक्त बड़े पैमाने पर मेंथा की खेती की जाती है. जो किसानों की आय वृद्धि में कई गुना इजाफा कर सकता है.

इसको देखते हुए इन प्रखंडों के किसानों को मेंथा संबंधित खेती की जानकारी दी जा रही है. जिससे वे ज्यादा से ज्यादा उत्पादन कर सके तथा उनके उत्पाद को खरीदने के लिए बाहर की कंपनियां क्षेत्र में आवे इसको लेकर तैयारी की जा रही है. साथ ही मेंथा की बेहतर उत्पादन को लेकर किसान पाठशाला के माध्यम से प्रशिक्षण दिया जा रहा है. जिससे किसान लाभान्वित होकर अन्य किसानों को भी इस फायदे की खेती के प्रति प्रेरित कर सके. स्थानीय स्तर पर तेल निकालने के लिए किसानों को आत्मा द्वारा मशीन की भी व्यवस्था की जाएगी.

जिले में सोनाचूर चावल का विशेष तौर पर उत्पादन होता है इस विशेष प्रकार के सोनाचूर चावल से बक्सर की पहचान को लेकर विभागीय स्तर पर कार्य शुरू किया गया है. जिसके लिए जिला पदाधिकारी ने भरपूर सहयोग करने का आश्वासन दिया है.

वही भौगोलिक दृष्टिकोण को देखते हुए जिले के विभिन्न प्रखंडों में अलग-अलग किस्म की फसलों का उत्पादन होता है. जिसके आधार पर किसानों को क्षेत्रीय फसलों के उत्पादन के प्रति प्रोत्साहित किया जा रहा है तथा संबंधित फसलों की ट्रेनिंग दी जा रही है. जिससे किसान ज्यादा से ज्यादा संबंधित फसलों का उत्पादन प्राप्त कर सकें.

Posted by Ashish Jha

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