शहरवासियों के मरीन वाक का सपना टूटा, वाकिंग बंद

98 लाख की लागत से बना पेडिस्ट्रेरियन कॉरिडोर हुआ ध्वस्त गंगा किनारे बनाया गया था पेडिस्ट्रेरियन कॉरिडोर बक्सर : सरकारी योजनाओं में मानक के अनुरूप कार्य नहीं कराने और प्राक्कलन के अनुसार मेटेरियल नहीं इस्तेमाल करने की संस्कृति ने शहरवासियों के मैरीन वाकिंग का सपना चकनाचूर कर दिया है. 98 लाख 66 हजार 300 रुपये […]

By Prabhat Khabar Print Desk | July 5, 2017 6:07 AM

98 लाख की लागत से बना पेडिस्ट्रेरियन कॉरिडोर हुआ ध्वस्त

गंगा किनारे बनाया गया था पेडिस्ट्रेरियन कॉरिडोर
बक्सर : सरकारी योजनाओं में मानक के अनुरूप कार्य नहीं कराने और प्राक्कलन के अनुसार मेटेरियल नहीं इस्तेमाल करने की संस्कृति ने शहरवासियों के मैरीन वाकिंग का सपना चकनाचूर कर दिया है. 98 लाख 66 हजार 300 रुपये की लागत से गंगा किनारे बना पेडिस्ट्रेरियन कॉरिडोर निर्माण के पांच साल में ही ध्वस्त हो गया है. गंगा में बह रहे ताड़का नाले के पास टूटकर खतरनाक तरीके से झूल रहे पुलनुमा कॉरिडोर पर आवाजाही बंद कर दी गयी है,
जहां से कॉरिडोर टूटा है वहां से तकरीबन सौ मीटर की दूरी पर दोनों तरफ ईंट की दीवार खड़ी कर दी गयी है, ताकि लोग आवाजाही ना कर सकें. इससे इस कॉरिडोर का इस्तेमाल बंद हो गया है. वहीं, कई जगह से टूट-टूट कर झर रहा कॉरिडोर जानलेवा बना हुआ है. इस कॉरिडोर का निर्माण वर्ष 2011 में पूरा हुआ था, लेकिन निर्माण के पांच वर्षों में ही यह कॉरिडोर जर्जर होकर बरबाद हो गया.
गंगा की धारा के बीच दिखता था दिलकश नजारा : मरीन ड्राइव की तर्ज पर बने इस कॉरिडोर का उद्देश्य शहरवासियों को सुबह स्वच्छ वातावरण में टहलने, चांदनी रात में झिलमिलाते तारें, सामने से गंगा की कलकल करती आवाज और लहरों से उठती ठंडी-ठंडी हवाओं का सुखद एहसास कराने के लिए किया गया था. लोग बताते हैं कि सपने जैसे लगते ये सुखद एहसास कुछ दिनों तक शहर के गंगा तट पर महसूस हुआ, लेकिन यह सपना चकनाचूर हो गया. मरीन वाक पर उनदिनों गुलाबी ठंड का मजा लेने के लिये देर शाम युवाओं की भीड़ खूब उमड़ती थी.
प्रशासनिक उदासीनता से बदहाल हुआ कॉरिडोर : शहर के राजेश पांडेय, कुमार अभिषेक, गिरीश वर्मा आदि ने बताया कि कभी बड़े शहरों में मौजूद रिश्तेदारों के यहां जाने पर गंगा तट का यह मनमोहक दृश्य देखने को मिलता है, लेकिन यहां बने मरीन वाक के बाद लगा था कि यह सपना साकार होगा. लोगों ने कहा कि यहां कुछ देर बैठने के बाद मानसिक शांति का आभास होने लगता था. उनकी वर्षों से दिली तमन्ना थी कि ऐसी कोई जगह शहर में बने जहां वे जाकर दोस्तों के बीच मिल बैठकर एकांत में कुछ बातें कर सकें तथा प्राकृतिक दृश्यों के बीच मन: स्थिति को नियंत्रित कर सकें, लेकिन प्रशासनिक उदासीनता से अब यह असंभव हो गया है.
प्राक्कलन पट्ट कर रहा बयान, अधूरा हुआ काम : रामरेखा घाट के पास से शुरू हो रहे पेडिस्ट्रेरियन कॉरिडोर के पास मिट्टी में धंसा हुआ इसका प्राक्कलन पट्ट इस कार्य की दुर्दशा की कहानी बयान कर रहा है. प्राक्कलन पट्ट के अनुसार शहर के गंगा किनारे नाथ बाबा घाट से गोला घाट तक पैदल पथ और पेडिस्ट्रेरियन कॉरिडोर का निर्माण कराया जाना था, लेकिन यह निर्माण नाथ बाबा घाट से न होकर रामरेखा घाट से कराया गया है.

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