दीपक को देख कर गले लगाने के लिए दौड़ पड़ी मां, बेटे को देखकर आंखों से झरने लगे आंसू
गांव की महिलायें भी अपना काम छोड़ कर दीपक को देखने पहुंची थी. लोगों ने दीपक को माला पहनाकर स्वागत किया. दीपक सुबह 11.30 बजे अपने घर पहुंचे थे.
बिहार के मुजफ्फरपुर के रहने वाले दीपक 17 दिनों तक उत्तरकाशी के सुरंग में जीवन और मौत से संघर्ष के बाद शुक्रवार को सरैया ओपी के गिजास मठ टोला स्थित अपने घर पहुंचे. उनके स्वागत में गांव के सभी गणमान्य उनके दरवाजे पर खड़े थे. घर के लोग पटना पहुंचने के साथ एक-एक पल की जानकारी ले रहे थे. दीपक की गाड़ी जैसे ही घर के दरवाजे पर रुकी. मां ऊषा देवी दीपक को गले लगाने के लिये दौड़ पड़ी. दोनों मां-बेटे की आंखों में आंसू थे. मां ने जब बेटे को नजदीक से देखा तो पिछले 20 दिनों की घबराहट और बेचैनी एक पल में दूर हो गयी.
मां-बेटे का प्रेम देख वहां मौजूद कई लोगों की आंखें भीग गयी. इसके बाद दीपक ने पिता शत्रुघ्न पटेल सहित सभी रिश्तेदारों और गांव के लोगों को पैर छूकर प्रणाम किया. हर कोई दीपक का हाल-चाल लेने के लिये आतुर था. गांव की महिलायें भी अपना काम छोड़ कर दीपक को देखने पहुंची थी. लोगों ने दीपक को माला पहनाकर स्वागत किया. दीपक सुबह 11.30 बजे अपने घर पहुंचे थे. इससे पहले ही वहां स्वागत की तैयारी हो चुकी थी. पिता शत्रुघ्न पटेल के अलावा दीपक के सारे रिश्तेदार मौजूद थे. करीब 20 दिनों बाद घर में खुशी का माहौल था. बाहर से आये लोगों को बैठाने के लिये कुर्सियां मंगायी जा रही थी.
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दीपक के घर भंडारा, लोगों को खिलायी गयी खीर-पूरी
दीपक के घर पहुंचने पर भंडारा का आयोजन किया. घर वालों ने खीर-पूरी और सब्जी बनायी. जिसे घर आने वाले सभी लोगों को खिलाया गया. दीपक के पिता ने लड्डू मंगा कर रखा था, दीपक के आने की खुशी में लोगों के बीच लड्डू वितरित किया गया. दीपक के घर दिन भर लोगों का तांता लगा रहा. हर कोई दीपक से मिल कर उसका हाल-चाल लेना चाहता था. इस दौरान दीपक के कई पुराने दोस्त भी मिलने पहुंचे. ग्रामीणों के साथ यहां सामूहिक रूप से जश्न मनाया गया. दीपक के कई दोस्त पटाखे लेकर आये थे. लोगों ने खुशी में पटाखे छोड़े. शाम में दीपक के घर में दीप जला कर दिवाली मनायी गयी.
दो दिन तक पानी पीकर रहा, दस दिनों तक मिली मूढ़ी
दीपक ने बताया कि 41 लोगों की रात की शिफ्ट थी. हमलोगों ने रात में काम किया और सुबह जब बाहर निकलना चाहे तो रास्ता ब्लॉक था. हमलोगों के पास बाहर संपर्क करने का कोई उपाय नहीं था. पहले लगा कि छोटा-सा ब्लॉक होगा. कुछ देर में ठीक हो जायेगा. फिर सुबह से रात हो गयी. बाहर से संपर्क नहीं हुआ तो हमलोगों को डर लगने लगा. खाने के लिये भी कुछ नहीं था तो हमलोगों ने पानी पीकर रात काटी. दूसरे दिन भी वही स्थिति थी. तीसरे दिन सुरंग में लगे चार इंच के पाइप से खाने के लिये मूढ़ी मिली.
पाइप से ही हमलोगों को ऑक्सीजन मिल रहा था. बाहर से लोग पाइप से ही बोलकर बताते थे. हमलोगों को कहा किया कि चिंता मत कीजिये. जल्द ही आप लोगों को निकाल लिया जायेगा. हमलोगों को कुछ बोलना होता था तो पाइप से चिल्लाकर बोलते थे, जिससे आवाज बाहर चला जाये. दस दिनों के बाद छह इंच का पाइप अंदर भेजा गया. उसके जरिये फल, पानी और खाना बाहर से आया करता था. अंदर हमलोगों के पास जियो टेक्सटाइल था, जो चादर जैसा होता है. उसी को बिछा कर हमलोग सोते थे. 17 दिनों तक हमलोगों के लिये एक-एक पल गुजारना मुश्किल था. हालांकि यह विश्वास था कि हमलोगों को निकालने की कोशिश हो रही है.