संयुक्त अभियान चलाने का निर्देश

भागलपुर : भागलपुर जोन के जोनल आइजी सुशील मानसिंह खोपड़े ने जमुई, मुंगेर, लखीसराय और बांका एसपी को अलर्ट करते हुए चार दिन पहले नक्सल प्रभावित जिलों में नक्सलियों के खिलाफ संयुक्त अभियान चलाने के निर्देश को गंभीरता से लेने कहा था. जोनल आइजी ने चारों जिलों के एसपी से कहा है कि नक्सलियों के […]

By Prabhat Khabar Print Desk | April 26, 2017 4:51 AM

भागलपुर : भागलपुर जोन के जोनल आइजी सुशील मानसिंह खोपड़े ने जमुई, मुंगेर, लखीसराय और बांका एसपी को अलर्ट करते हुए चार दिन पहले नक्सल प्रभावित जिलों में नक्सलियों के खिलाफ संयुक्त अभियान चलाने के निर्देश को गंभीरता से लेने कहा था. जोनल आइजी ने चारों जिलों के एसपी से कहा है कि नक्सलियों के विरुद्ध किसी भी ऑपरेशन से पहले तैयारी पूरी कर लें. रात में ऑपरेशन में जाने से बचने और पोस्ट पर कड़ी सुरक्षा करने के निर्देश दिये गये हैं.

… पर, टूटा नहीं है नक्सलियों का मनोबल
मगध व शाहाबाद क्षेत्र का हालमगध क्षेत्र के लगभग सभी जिलों में नक्सलियों की गतिविधियां अब भी जारी हैं. बेशक, कहीं कम, तो कहीं ज्यादा. वैसे, नक्सलवाद के लिए चर्चित रहा जहानाबाद पिछले कुछ वर्षों में शांत रहा है. अरवल से ऐसी घटनाओं की सूचनाएं नहीं के बराबर हैं. पर गया, औरंगाबाद व नवादा जैसे जिलों में रह-रह कर नक्सली अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए हिंसक वारदातों को अंजाम दे रहे हैं. औरंगाबाद व गया के करीब एक दर्जन ब्लॉक ऐसे हैं, जहां नक्सलियों की गतिविधियां जारी हैं. कमोबेश लगातार. वे बार-बार यह एहसास कराते हैं कि उनका मनोबल अभी टूटा नहीं है.
पिछले एक वर्ष में ही गया, औरंगाबाद तथा जमुई की सीमा से सटे नवादा जिले में कई ऐसी घटनाएं हो गयीं, इनसे चिंता बढ़ी है. पिछले वर्ष जुलाई महीने में गया जिले के बांकेबाजार प्रखंड इलाके में स्थित डुमरीनाला के जंगली क्षेत्र में नक्सलियों से सुरक्षा बलों की एक मुठभेड़ ने प्रशासन को सोचने को मजबूर कर दिया. तब वहां तीन उग्रवादी तो जरूर मारे गये, पर बदले में नक्सलियों से लोहा लेने मोरचे पर गये 10 जवानों को भी शहादत देनी पड़ी. इस ऑपरेशन में गया के साथ-साथ औरंगाबाद की तरफ से भी सुरक्षा बलों ने दबाव बढ़ाया था, पर तमाम कोशिशों के बावजूद इस नक्सल विरोधी अभियान में सफलता से ज्यादा नुकसान हो गया. उधर, जमुई से सटे मगध क्षेत्र के नवादा जिले में भी नक्सली बीच-बीच में अपनी ताकत का एहसास करा दे रहे हैं.
मोबाइल व परचा-पोस्टर कम से कम इस्तेमाल करने की रणनीति
संगठन के सेंट्रल कमेटी सदस्य के बिहार-झारखंड में आने के बाद नक्सली एक बार फिर से ग्रामीणों, मजदूरों को अपने पक्ष में करने में जुट गये हैं. नक्सलियों द्वारा नया नारा शुरू किया गया है. नक्सली पशुपति से तिरूपति तक लाला गलियारा बनाने के लिए माओ के उस सिद्धांत को अपना आदर्श मान रहे हैं कि सत्ता बंदूक की नली से आती है. इसके लिए बौद्धिक खुराक के साथ ही मारक दस्ते को मजबूत करने की रणनीति पर नये सिरे से काम हो रहा है. सेंट्रल कमेटी के सदस्य ने इस बार कोड वर्ड में नारा दिया है कि जन अरण्य में असंतोष की आग लगाओ, जिससे जंगल जल जाये. फिर से नयी पौध फूटे और लाल पलास खिल उठे. इसके लिए ग्रामीण इलाकों में जन अदालत को छोड़ मेला, शादी समारोह व अनौपचारिक बैठकों पर विशेष जोर दिया जा रहा है.
नक्सली एक बार फिर से ग्रामीणों से जुड़े मुद्दों को उठाने में लगे हैं. सूत्रों
के मुताबिक फिलहाल सबसे बड़ा बदलाव यह आया है कि एरिया कमांडर, जोनल कमांडर, सब जोनल कमांडर जैसे नक्सलियों को मोबाइल का इस्तेमाल कम करने का निर्देश दिया गया है. मोबाइल बंद होने से पुलिस तक सूचना नहीं जा पायेगी और कैडर आम लोगों से जुड़े भी रहेंगे, कारण वे सूचना के आदान-प्रदान के लिए आम लोगों पर निर्भर रहेंगे. अखबार व पत्रिकाओं की खरीद भी बढ़ायी गयी है. परचा-पोस्टर से ज्यादा माैखिक रूप से अपने विचारों को लोगों तक पहुंचाने का फरमान जारी हुआ है. इसमें माओवादी या नक्सली शब्द का उपयोग नहीं करने की हिदायत भी दी गयी है. केवल व्यवस्था के प्रति घृणा और उसे प्रतिशोध में बदलने की रणनीति बनायी गयी है.

Next Article

Exit mobile version