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सलारपुर में एक सप्ताह से गोलीबारी

जमीन के लिए जंग. दियारा में दो पक्ष आमने-सामने, कभी भी हो सकती है बड़ी घटना खगड़िया जिले के परबत्ता थाना क्षेत्र की दो पंचायत भरसो व कुल्हरिया तक फैले सलारपुर दियारा में जमीन पर कब्जा के लिए एक सप्ताह से रुक-रुक कर गोलीबारी हो रही है. गांव के किसान और मजदूर डरे सहमें हैं. […]

जमीन के लिए जंग. दियारा में दो पक्ष आमने-सामने, कभी भी हो सकती है बड़ी घटना

खगड़िया जिले के परबत्ता थाना क्षेत्र की दो पंचायत भरसो व कुल्हरिया तक फैले सलारपुर दियारा में जमीन पर कब्जा के लिए एक सप्ताह से रुक-रुक कर गोलीबारी हो रही है. गांव के किसान और मजदूर डरे सहमें हैं. भयभीत किसान अपनी फसलों का पटवन नहीं कर पा रहे हैं. खेतों में मजदूरों ने जाने से इनकार कर दिया है. कभी भी यह हवाई फायरिंग खूनी संघर्ष का रूप ले सकती है.
बिहपुर/खगड़िया : सलारपुर के किसान महेंद्र यादव ने बताया कि इस मौजे की जमीन वर्ष 1951 से 1971 तक गंगा में डूबी हुई थी. इसलिए 1960 में जमीन के सर्वे को वैधानिक माना नहीं जा सकता है. पहले का नक्शा भी किसान की दलील को पुख्ता करता है. 1964 में प्रकाशित सर्वे को लेकर बिशौनी निवासी तथा मधेपुरा जिला के आलमनगर विधानसभा क्षेत्र के पहले विधायक यदुनंदन झा ने विधानसभा में मामला उठाया. सर्वे की रिपोर्ट को निरस्त करने की मांग को गंभीरता से लेते हुए बिहार सरकार के राजस्व विभाग ने 24 नवंबर 1965 को अधिसूचना जारी की.
डीएम द्वारा कराये गये सर्वे को संक्षिप्त सामंजन क्रिया बताते हुए न केवल शीघ्र व्यापक सर्वे कराने की आवश्यकता पर बल दिया, बल्कि शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक दिशानिर्देश भी दिये. अधिसूचना की प्रति बिहपुर के सीओ तथा नवगछिया के एसपी को भी दी गयी थी.
बीस जनवरी 1966 को भागलपुर के अपर समाहर्ता ने रिविजन वाद की सुनवाई करते हुए कहा था कि पूर्व में ही राज्य सरकार द्वारा इस मौजे की जमीन का सर्वे निरस्त किया जा चुका है. इसलिए सुनवाई बंद की जाती है. तीन अगस्त 1979 को बिहार सरकार के राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग में सरकार के उपसचिव सच्चिदानंद प्रसाद ने सभी आयुक्तों तथा समाहर्ता के नाम प्रेषित पत्र में स्पष्ट कहा कि गंगा बरार होने के बाद यदि जमीन की पहचान समाप्त नहीं होती है, तो बिहार काश्तकार अधिनियम की धारा 52 ए के अनुसार ऐसी जमीन पुराने रैयतों की ही मानी जायेगी.
उपरोक्त तथ्यों के आलोक में 150 किसान जमीन की लगान रसीद कटाने लगे. लेकिन वर्ष 2008 में बिहपुर के सीओ ने यह कहकर 150 किसानों के नाम रसीद काटने से मना कर दिया कि 1960 में हुए सर्वे के आधार पर आलमनगर के पूर्व विधायक यदुनंदन झा के पुत्र उमेश चंद्र झा सहित 11 भूधारियों के नाम दाखिल-खारिज कर लगान रसीद निर्गत कर दिया गया है. इस तरह वर्षों से लगान रसीद कटाकर खेती करने वाले 150 किसान और 1960 के सर्वे के आधार दाखिल-खारिज का रसीद कटाकर 11 बड़े भूधारी आमने-सामने आ गये. इस 750 एकड़ भूमि पर दखल को लेकर कई बार छिटपुट हिंसा भी हो चुकी है.
पुन: सर्वे का मिला था आदेश भागलपुर के अपर समाहर्ता ने 09-11-09 को यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दिया. भागलपुर के समाहर्ता द्वारा नए सर्वे की मांग पर भू अभिलेख विभाग के निदेशक ने कहा कि आधुनिक तकनीक से सर्वे कराने की प्रक्रिया जारी है. सर्वे के मामले में दक्ष एजेंसी का चयन किया जा रहा है. तब तक रिविजनल सर्वे के अभिलेख से काम चलाया जाये. किसानों का कहना है कि इस इलाके में रिविजनल सर्वे हुआ ही नहीं.
झगड़े की पृष्ठभूमि तैयार : एक पक्ष के किसान 1954 से 2008 तक की लगान रसीद लेकर दूसरे पक्ष से भिड़ने को तैयार हैं, तो दूसरे पक्ष के नाम पर 1975 से लगान रसीद काटकर पदाधिकारियों ने झगङे की पृष्ठभूमि तैयार कर दी है. एक पक्ष जमीन पर अपना अधिकार जताता है. जबकि दूसरे पक्ष के लोगों का कहना है कि यदि उनलोगों को जमीन से बेदखल करने की कोशिश की गयी तो विवाद बढ़ेगा.
750 एकड़ जमीन के लिए होता रहा है संघर्ष
150 किसानों और 11 बड़े भूधारियों के बीच चल रही है लड़ाई
भय के माहौल में रह रहे दियारा क्षेत्र के लोग
बिहपुर थाने में भी दर्ज हो चुके हैं कई मामले
जमीन की लड़ाई में बिहपुर थाना में कई मामले दर्ज हो चुके हैं. 150 किसानों में अरुण कुमार सिंह द्वारा मुख्यमंत्री को दिये आवेदन के आधार पर मामले की जांच भागलपुर के बंदोबस्त पदाधिकारी ने की थी. उन्होंने राजस्व व भूमि सुधार विभाग को प्रेषित प्रतिवेदन में कहा कि भूमि सुधार विभाग द्वारा पुनरीक्षण सर्वे नहीं किये जाने के कारण दियारा क्षेत्र में विधि व्यवस्था खराब होने की समस्या बन रही है.
क्या है मामला : नदियों की कोख से निकली जमीन पर कब्जे के लिए कोसी और फरकिया की धरती पर वर्षों से खून की होली खेली जाती रही है. इस झंझट की बुनियाद भागलपुर के तत्कालीन समाहर्ता द्वारा तैयार की गयी है. दरअसल गंगा के गर्भ में समायी 750 एकड़ जमीन का भागलपुर के तत्कालीन समाहर्ता द्वारा न केवल गलत तरीके से सर्वे कर दिया गया, बल्कि दो अलग-अलग पक्ष के किसानों के नाम लगान रसीद भी काट दी गयी.

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