भागलपुर: राख में क्या खोजते हम, नगर जलता, वतन जलता, पर नहीं मतलब किसी को़ यह लाइन अवलोकन नामक पत्रिका में छपी थी. 89 के दंगे के बाद भागलपुर के कलंक मिटाने के लिए 1993 में भागलपुर से निकलने वाली अवलोकन नामक पत्रिका ने अपना सदभावना विशेषांक निकाला तो इस पत्रिका की देश भर में चर्चा हुई़ यह अंक इतना सफल रहा कि लोगों ने इस अंक को हाथों-हाथ लिया़ लेकिन आज भागलपुर के लोगों ने इस पत्रिका भी भुला दिया़.
यह पत्रिका एक दो साल नहीं बल्कि 30 साल से अधिक समय तक भागलपुर से प्रकाशित हुई़ साल 1966 से इसका प्रकाशन शुरू हुआ जो लगातार 1992 तक प्रकाशित होता रहा. इसके बाद भी इसके कुछ अंक निकले. लेकिन इसके बाद इसके संपादक के निधन के बाद यह पत्रिका बंद हो गयी. इसी की तरह भागलपुर से निकलने वाली कई और पत्रिकाएं जो शहर की धरोहर थीं वह पूरे परिदृश्य से गायब हो गयी.
देशभर के साहित्यकार लिखते थे लेख. अशोक कुमार, पंडित निशिकांत मिश्र, टीके सेन, आरएन प्रसाद, रेडियो के जानेमाने उदघोषक अमीन सयानी जैसे लोग इस पत्रिका से जुड़े हुए थे और नियमित इसमें उनका लेख छपता था़ बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद इस पत्रिका के संरक्षक थे जबकि पूरनलाल सिंधी इसके संपादक होते थे़ इस पत्रिका ने भागलपुर शहर की पत्रकारिता को भी एक नया तेवर दिया था़ इसमें भागलपुर की सामाजिक और साहित्यिक गतिविधियों के साथ ही भागलपुर दूरदर्शन अौर आकाशवाणी से संबंधित लेख को भी जगह दी जाती थी़
हा-हा, ही-ही का रहता था इंतजार
भागलपुर के लोगों को इस पत्रिका में छपने वाले चुटकुलों के कॉलम पूरन का चूरन हा-हा, ही-ही बेसब्री से इंतजार रहता था़ सबसे खास बात थी कि इसमें बड़ी संख्या में पाठक अपना-अपना चुटकुला भेजते थे. साथ ही हर साल इसका होली विशेषांक आता था जिसमें शहर की जानमानी हस्तियों के व्यक्तित्व को एक व्यंग्य के जरिए बताया जाता था़
रेडियो श्रोता व दूरदर्शन दर्शक संघ की थी यह पत्रिका
भागलुपर से निकलने वाली पत्रिका का निकालने का जिम्मा भागलपुर रेडियो श्रोता और दूरदर्शन दर्शक संघ के पास था़ इस पत्रिका के खर्च का जिम्मा भी यह संघ ही उठाता था़ भागलपुर के व्यवसायिक संस्थान इसमें विज्ञापन देते थे़