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जानना होगा आभासी यथार्थ का सच : रविभूषण

मौजूदा समय में राष्ट्र निर्माण का एजेंडा, जनता का राष्ट्रवाद और जन राजनीति’ विषयक विचार-विमर्श में बोले प्रसिद्ध साहित्यकार-आलोचक रविभूषण भागलपुर : देश का मौजूदा माहौल आभासी यथार्थ का है. हमें यथार्थ और आभासी यथार्थ में भेद समझना होगा और आभासी यथार्थ का सच न केवल जानना होगा बल्कि इसे उनलोगों तक पहुंचाना होगा जो […]

मौजूदा समय में राष्ट्र निर्माण का एजेंडा, जनता का राष्ट्रवाद और जन राजनीति’ विषयक विचार-विमर्श में बोले प्रसिद्ध साहित्यकार-आलोचक रविभूषण

भागलपुर : देश का मौजूदा माहौल आभासी यथार्थ का है. हमें यथार्थ और आभासी यथार्थ में भेद समझना होगा और आभासी यथार्थ का सच न केवल जानना होगा बल्कि इसे उनलोगों तक पहुंचाना होगा जो कि इसे ट्रैप में फंस रहे हैं. हमें खुद ही वास्तविक राष्ट्रवाद और छद्म, धार्मिक राष्ट्रवाद में अंतर करना होगा. यह हमारी अक्षमता है कि हम जन से कट चुके हैं. सोसाइटी से दूर हैं. हम 80 प्रतिशत मूक बने लोगों की आवाज नहीं बन पा रहे हैं. वे झूठ को सच की तरह बोल रहे हैं और हम मौन रहकर उनके झूठ काे लोगों तक पहुंचने दे रहे हैं. हमें इसके पार होना होगा.
उक्त बातें न्याय मंच के तत्वावधान में होटल आमंत्रण में आयोजित मौजूदा समय में राष्ट्र निर्माण का एजेंडा, जनता का राष्ट्रवाद और जन राजनीति’ विषयक विचार-विमर्श में अपनी बात रखते हुए प्रसिद्ध साहित्यकार व आलोचक रविभूषण ने कहीं. उन्होंने कहा कि यथार्थ में भय नहीं होता है. जिसने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग नहीं लिया आज की तारीख में वहीं भारत माता की जय बोल रहा है. जो किसानों के लिए नीति बनाने में शामिल नहीं हुआ वहीं वंदे मातरम बोल रहा है. हर चीज को हास्यास्पद बनाया जा रहा है ताकि लोग सही-गलत, सच-झूठ में फर्क न कर सकें. जेएनयू, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, हैदराबाद विश्वविद्यालय को निशाने पर लेकर विरोध करना चाह रहे लोगों में खौफ पैदा किया जा रहा है.
एक जुमला बन गया है राष्ट्रवाद
रविभूषण ने कहा कि आज राष्ट्रवाद के नाम पर हिंदू, संघ, धर्म, छद्म राष्ट्रवाद का सहारा लिया जा रहा है. राष्ट्रवाद, आज की तारीख में एक जुमला बन गया है. आज कुछ लाेगों ने राष्ट्रवाद को अपनी मुट्ठी में कर लिया है. वे राष्ट्रवाद को न केवल अपने तरीके से परिभाषित ही नहीं कर रहे हैं बल्कि बहुसंख्य को अपने स्वपरिभाषित राष्ट्रवाद के ट्रैप में फंसा रहे हैं. आज राष्ट्रवाद की परिभाषा आरएसएस, विहिप और अभाविप तय कर रहा है.
देश में भीड़तंत्र में बदल चुका है लोकतंत्र: रविभूषण ने कहा कि आज के शासनकाल में देश का लोकतंत्र एक भीड़तंत्र में बदल चुका है. और जहां भीड़ होती है, वह सच के लिए जरूरी दलील, साक्ष्य और प्रमाणपत्र के न कोई मायने रहते हैं और न ही कोई इसे सुनने, देखने और परखने वाला रह जाता है.
देश में दौड़ रहा उन्मादी पूंजी बाजार
बाजारवादी सोच वाले ही देश की बात कर रहे हैं. भावना को उभार कर उन्माद पैदा किया जा रहा है. देश में उन्मादी पूंजी बाजार दौड़ रही है जबकि उत्पादन करने वाली पूंजी बाजार हाशिये पर है.
जन राजनीति नहीं, हो रही धन राजनीति
आज देश की संसद में सर्वाधिक धनकुबेर और बाहुबली हैं जिससे मौजूदा राजनीति से जन गायब धन का समावेश हो गया है. जनसाहित्य में भी जन से जुड़े मुद्दे का अभाव है. कहां हम लिख रहे हैं कि विकसित राज्य में किसान ज्यादा आत्महत्या कर रहा है न कि विकासशील यूपी बिहार में.
कार्यक्रम का संचालन डॉ मुकेश कुमार ने किया. इस अवसर पर डाॅ अरविंद कुमार, डॉ उदय, डॉ योगेंद्र, डॉ शांबे, डॉ केके मंडल, न्याय मंच के रिंकू, नवीन, राजेश, शशांक सिंह, इंद्रदेव, वीरेंद्र, रंजन, राम नारायण भाष्कर, सुधांशु शेखर, लालू राम, प्रमोद दास, गौतम कुमार प्रीतम, कपिल देव मंडल, मनाेहर मंडल आदि मौजूद रहे.

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