बिहपुर : बिहपुर प्रखंड स्थित ऐतिहासिक स्वराज आश्रम में आजादी के आंदोलन के दौरान आजादी के दीवानों का जमघट लगता था. इतिहास के जानकार बताते हैं कि नमक सत्याग्रह और राष्ट्रीय झंडा फहराने को लेकर यहां पर पर अंगरेजी सरकार ने काफी जुल्म ढाये.
31 मई 1930 को भागलपुर के जिला मजिस्ट्रेट एसपी, डीएसपी, सामान्य पुलिस व हथियाारों से लैस सैनिकों के साथ आश्रम पर आये. आश्रम में उस समय कांग्रेस कार्यालय, साथ खादी भंडार व चरखा संघ का कार्यालय भी थे. एक जून को तीसरे पहर नशाबंदी को लेकर चल रहे आंदोलन के दौरान शंराब व गांजे की दुकानों पर कार्यकर्ता धरना देने लगे. यहां यूरोपीय अधिकारी मौजूद थे. उन्होंने स्वयंसेवकों को दुकान पर से हट जाने को कहा, लेकिन स्वयंसेवकों का धरना जारी रहा. इसके बाद अधिकारियों के आदेश पर पुलिस स्वयंसेवकों पर लाठी बरसाने लगी.
उनके हाथों से राष्ट्रीय झंडा छीन कर जला दिया. अंगरेजों ने खादी भंडार पर भी कब्जा जमा लिया. सारे कार्यालय का ताला तोड़ कर उससे चरखा, सूत, कपास, खादी के कपड़े बाहर फेंक दिये. स्वंयसेवकों ने आनन-फानन में एक सभा बुलायी, जिसमें सुखदेव चौधरी ने जोशीला भाषण दिया. यह फैसला हुआ कि कांग्रेस कार्यालय पर कब्जा के लिए स्वयंसेवकों का एक जत्था वहां जायेगा. दो जून से स्वयंसेवकों का प्रयास शुरू हो गया. वे लोग जत्था बनाकर कांग्रेस भवन की ओर बढ़ने लगे. लाठियां खाकर भी स्वयंसेवकों का जोश कम नहीं हुआ. उनके समर्थन में आसपास के गावों से भी लोगों का जत्था आश्रम की ओर बढ़ने लगा. छह जून को कांग्रेस कार्यालय से थोड़ी दूर आम के बागीचे में विशाल सभा हुई. उस दिन भी अंगरेजी फौज ने स्वयंसेवकों को बुरी तरह से पीटा, जिसमें अनेक लोग घायल हो गये. सात जून को पुन: सभा हुई. पुलिस का दमनचक्र चलता रहा. स्थिति बिगड़ती चली गयी. यह सूचना पटना पहुंची, जहां से प्रो अब्दुल बारी, बलदेव सहाय, ज्ञान साहा आठ जून को बिहपुर पहुंचे. दूसरे दिन राजेंद्र बाबू पटना के अपने सहयोगियों के साथ बिहपुर पहुंचे. नौ जून को तीसरे पहर उसी बागीचे में स्वयंसेवकों की एक सभा हुई. उसमें डॉ राजेंद्र प्रसाद, प्रो बारी और मो आरीफ के भाषण हुए. उसी शाम अंग्रेज एसपी पुलिस दस्ते को लेकर बिहपुर बाजार गये, जहां राजेंद्र बाबू समेत अन्य लोग भी थे. उन पर पुलिस उन पर बेरहमी से लाठियां बरसाने लगी. वहां पर राजेंद्र बाबू, बलदेव सहाय,अब्दुल बारी, मुरली मनोहर प्रसाद व ज्ञाना साहा भी पुलिस की बर्बरतापूर्ण कार्रवाई में घायल हो गये. कई स्थानीय स्वयंसेवकों ने इनके शरीर पर लेट कर इन्हे पड़ रही लाठियों को अपने ऊपर लेकिर उन्हें बचाया. आजादी के दीवानों का प्रयास रंग लाया और स्वराज आश्रम समेत पूरा देश गुलामी से मुक्त होकर स्वतंत्र हुआ.