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कल राष्ट्रपति भवन के लिए प्रस्थान करेंगी उलूपी झा

कल राष्ट्रपति भवन के लिए प्रस्थान करेंगी उलूपी झा-देश की 100 सशक्त महिलाओं की सूची में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने किया है चयनित-राष्ट्रपति के साथ देश भर से चयनित महिलाएं लंच में होंगी शामिलफोटो : वरीय संवाददाता, भागलपुरमहिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 100 सशक्त महिलाओं में कला-संस्कृति कोटि में भागलपुर की उलूपी […]

कल राष्ट्रपति भवन के लिए प्रस्थान करेंगी उलूपी झा-देश की 100 सशक्त महिलाओं की सूची में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने किया है चयनित-राष्ट्रपति के साथ देश भर से चयनित महिलाएं लंच में होंगी शामिलफोटो : वरीय संवाददाता, भागलपुरमहिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 100 सशक्त महिलाओं में कला-संस्कृति कोटि में भागलपुर की उलूपी झा का चयन किया है. उन्हें मंजूषा कला के क्षेत्र में अनूठे योगदान को लेकर ऑनलाइन वोटिंग के माध्यम से चयनित किया गया है. वे रविवार को राष्ट्रपति भवन के लिए भागलपुर से प्रस्थान करेंगी. देश भर से चयनित 100 महिलाएं राष्ट्रपति के साथ दोपहर के भोजन में 22 जनवरी को शामिल होंगी. नयी दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन कल्चरल सेंटर के सेरिमोनियल हॉल में लंच होना है. भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की संयुक्त सचिव वंदना गुप्ता ने उलूपी झा को कार्यक्रम में शामिल होने के लिए पत्र भेज दिया है……………………………………………………………………….मंजूषा कला पर उलूपी झा से प्रभात खबर की बातचीतसहन नहीं हुआ था मंजूषा कला के विलुप्त होने का दर्दमंजूषा अंग प्रदेश की एक मात्र कला है. यह विलुप्त हो गयी थी. जब इसके बारे में विस्तार से जानकारी मिली, तो इसके विलुप्त होने का दर्द सहन नहीं कर पायी और सोचना शुरू की कि इसमें जान कैसे फूंकी जाये. इसके प्रचार-प्रसार शुरुआत की और विकास के लिए तन-मन-धन से लग गयी. फिर आय का साधन बनाने में जुट गयीमुझे लगा कि मंजूषा कला को तभी बचाया जा सकता है, जब इसे आय का स्रोत बनाया जाये. यह बात जेहन में तब आयी, जब महिलाओं को मंजूषा कला सीखने के लिए प्रेरित करने जाती थी और वह कहती थीं कि इससे क्या लाभ होगा. तीन सौ से अधिक महिला कलाकारों को प्रशिक्षित किया. पेंटिंग बना कर आम लोगों के जरिये, प्रदर्शनी और एनजीओ के माध्यम से पेंटिंग बेच कर इसे आय का स्रोत दिया. आज बहुत सारी महिलाएं अर्निंग भी कर रही हैं. इस कला को और भी दिया विस्तारमंजूषा कला को केवल कागज पर पेंटिंग तक सीमित नहीं रहने दिया. इसे पेन स्टैंड, फ्लावर पॉट, कलम, बुक मार्क, ग्रिटिंग कार्ड, ड्रेस मेटेरियल पर भी उकेरना शुरू किया. कई अन्य चीजों पर भी उकेरना शुरू किया. इसका अच्छा रिस्पांस मिला.जापान की महिला ने भी की थी सराहनाब्रश-पेंट हमेशा अपने साथ रखनेवाली उलूपी बताती हैं कि मधुबनी पेंटिंग की तरह मंजूषा को भी पहचान मिले. यह विश्वास है कि एक दिन यह सपना पूरा होकर रहेगा. एक बार मंजूषा कला को दुपट्टा पर उकेर कर एक संस्था के माध्यम से जापान भेजा था. जापान से अच्छी सराहना मिली थी. तब भागलपुर के आदमपुर में रहती थी. हमारे काम को देखने जापान की एक महिला एलाना आयी थीं. उन्होंने इस कला को देखा था. सराहा भी. कहा था इसमें लगे रहिए.मंजूषा के मूल थीम को कभी नहीं छेड़ामंजूषा कला तीन रंग लाल, हरा व पीला से बनता है. इसमें हमने कोई चेंज नहीं किया. हमने इसे थोड़ा अलग लुक दिया, पर इसके मूल थीम को परिवर्तित नहीं किया. मुझे लगा कि इस कला में काफी दम है. इसके मूल थीम में बदलाव करना इस कला के साथ न्याय नहीं होगा. 2009 में जाना था मंजूषा की अहमियतउलूपी कहती हैं कि अब यह कला राष्ट्रपति भवन तक पहुंच चुकी है. अब अच्छा लग रहा है, लेकिन सफर अभी थमा नहीं है. यह चलता ही रहेगा. वह कहती हैं कि पहले दीवारों पर मंजूषा का बॉर्डर देख इतनी ही समझ पाती थी कि यह कोई कला होगी. वर्ष 2009 में दिशा ग्रामीण विकास मंच के द्वारा नाबार्ड की ओर से मंजूषा कला प्रशिक्षण का आयोजन किया गया था. इसमें शामिल हुई. तब यह जानने का मौका मिला कि भागलपुर की इस कला को बचाना और इसका प्रचार-प्रसार करना सभी का दायित्व है. यहीं से इस कला को जीवंत रूप देने का जुनून शुरू हुआ.

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