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मर के भी एक कर गये एबी वर्धन —संशोधित

मर के भी एक कर गये एबी वर्धन —संशोधित -20 मार्च 2013 को किसान रैली में हिस्सा लेने आये भाकपा के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव एबी वर्धन ने प्रभात खबर को दिया था साक्षात्कार-20 मार्च का पीडीएफ लगा सकते हैं…संवाददाता,भागलपुरएबी वर्धन प्रबुद्ध जननेता के साथ-साथ एक भविष्यद्रष्टा भी थे. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव […]

मर के भी एक कर गये एबी वर्धन —संशोधित -20 मार्च 2013 को किसान रैली में हिस्सा लेने आये भाकपा के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव एबी वर्धन ने प्रभात खबर को दिया था साक्षात्कार-20 मार्च का पीडीएफ लगा सकते हैं…संवाददाता,भागलपुरएबी वर्धन प्रबुद्ध जननेता के साथ-साथ एक भविष्यद्रष्टा भी थे. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव एबी वर्धन ने पहले ही आगाह किया था कि वाम दलों के बिखराव का फायदा उठा कर सांप्रदायिक शक्तियां सत्ता के केंद्र में दिखेगी. इतना ही नहीं लोकसभा चुनाव में वाम दलों में एकजुटता बनते-बनते रह गयी और फिर परिणाम में उनकी ताकत हाशिये पर जाते दिखी. इसके बाद बिहार विधानसभा चुनाव में एक बार उनके भविष्यवाणी के अनुसार एक मंच पर आये. महागंठबंधन के पक्ष में जनता के गोलबंद होने बावजूद वोट प्रतिशत बढ़े और सीट भी.मालूम हो कि 20 मार्च 2013 में जब वे बांका में होने वाले किसान रैली में जा रहे थे तो भागलपुर में कुछ देर के लिए उतरे थे. इसी दौरान प्रभात खबर को विशेष साक्षात्कार दिया था. इसी समय उन्होंने वाम दलों की एकजुटता की जरूरत बतायी थी. संघर्ष के लिए भागलपुर आते रहे थे वर्धनवामपंथी संघर्ष के लिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता एबी वर्धन आते रहे. हाल के दिनों में दो बार भागलपुर आये. 20 मार्च 2013 में बांका में किसान रैली को संबोधित करने और दूसरी बार लोकसभा चुनाव 2014 में बांका लोकसभा सीट से सीपीआइ प्रत्याशी संजय कुमार को नामांकन दाखिल कराने आये थे. लेफ्ट फ्रंट में बढ़ रहा है यूनिटी ऑफ एक्शन प्रभात खबर से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा था कि वामदलों का एक संयुक्त मोरचा है, जिसे हम लोग लेफ्ट फ्रंट कहते हैं. मेरी समझ में यूनिटी ऑफ एक्शन बढ़ रहा है और निकट भविष्य में उनकी एकजुटता और ज्यादा मजबूत होगी. इस समय वाम मोरचा ही यूपीए सरकार और बीजेपी की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ एक सक्षम विकल्प पेश कर रहे हैं. उन्होंने बताया था कि भाकपा में जो विभाजन आया, उसके फलस्वरूप मार्क्सवादी पार्टी और उसके बाद सीपीआइ एमएल इन सब में कुछ वैचारिक मतभेद हैं. इन वैचारिक और कार्यक्रम संबंधी मतभेदों के ही परिणाम स्वरूप अलग-अलग पार्टी बनी. इनमें कोई व्यक्तिगत मतभेद का प्रश्न नहीं है. नक्सलवादियों में अधिक क्रांतिकारी प्रस्तुत करने की है लड़ाई उन्होंने नक्सलवादी दलों के बारे में चर्चा करते हुए कहा था कि जब नक्सलवादी दलों के बीच में कौन अधिक क्रांतिकारी है, यह प्रश्न उत्पन्न होता है, तब उनमें फूट दिखाई देने लगती है तथा अलग-अलग हिस्से में बंट जाते हैं. लेकिन मेरी समझ में ऐतिहासिक दिशा एकजुटता की ओर हैं. धीरे-धीरे वे लोग भी वैचारिक एकजुटता की तरफ बढ़ रहे हैं. वे लोग भी कई मुद्दों पर जनसंघर्ष के प्रश्न पर कई वामदल व गुट एक साथ संघर्ष में हिस्सा ले रहे हैं. इस मुद्दे पर मैं बहुत आशावादी हूं, लेकिन नक्सलवाद से पूरी तरह से सहमत नहीं हूं. वही उन्होंने सरकार द्वारा नक्सलवादी को मुख्यधारा से जोड़ने के प्रश्न पर कहा कि मुख्यधारा का मतलब सरकार की धारा मानी जाये तो वह गलत होगा. मैं उसे मुख्यधारा मानता हूं, जो जनहित में जनता के प्रश्नों पर संघर्षरत है. भागलपुर के किसान हैं परेशान उन्होंने दु:ख व्यक्त करते हुए कहा था कि देश भर में कृषि संकट है. यह देश के लिए खतरे की बात है. किसान खेती से अब पलायन करना चाहते हैं. भागलपुर प्रमंडल में खासकर बांका क्षेत्र के किसान बहुत परेशान हैं. आंदोलन भी हो रहा है. उनसे एकजुटता और सहयोग देने के लिए कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से आये हैं.

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