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भागलपुर के कौशल का हो गया पलायन

भागलपुर के कौशल का हो गया पलायन-कुशल बुनकर बेंगलुरू, बनारस, सूरत आदि महानगरों में चलाने लगे हैं लूमसंवाददाता,भागलपुरभागलपुर में रेशम उद्योग की आधारभूत संरचना अचानक नहीं बिगड़ी, बल्कि इसके पीछे कई कारण रहे. सरकारी उदासीनता से लेकर बिचौलियों के खेल तक. अब यहां पर सिल्क उद्योग की जगह कपड़ा उद्योग बचाने की जद्दोजहद जारी है. […]

भागलपुर के कौशल का हो गया पलायन-कुशल बुनकर बेंगलुरू, बनारस, सूरत आदि महानगरों में चलाने लगे हैं लूमसंवाददाता,भागलपुरभागलपुर में रेशम उद्योग की आधारभूत संरचना अचानक नहीं बिगड़ी, बल्कि इसके पीछे कई कारण रहे. सरकारी उदासीनता से लेकर बिचौलियों के खेल तक. अब यहां पर सिल्क उद्योग की जगह कपड़ा उद्योग बचाने की जद्दोजहद जारी है. इसी कड़ी में भागलपुर के कुशल कारीगरों को अपनी आजीविका चलाने की आफत हो गयी. इसी कारण वे लोग देश के विभिन्न स्थानों पर लूम चलाने लगे. ऐसे में यहां का कौशल दूसरे महानगरों में पलायन हुआ. वहां के कपड़ों की गुणवत्ता बढ़ी. धीरे-धीरे यहां तैयार किये जारहे कपड़ों के लिए ऑर्डर आना बंद हो गया.बुनकर संघर्ष समिति के अशफाक अंसारी ने बताया कि 50 फीसदी कुशल बुनकर बाहर काम करने लगे हैं. उनके यहां पर पेट भरने की दिक्कत हो गयी थी. अभी जो बचे उन्हें भी कई प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र के भिभिंडी में मो नजीर, मो शकील समेत सैकड़ों बुनकर लूम चला रहे हैं. चंपानगर तांती बाजार के संजीव, प्रदीप आदि बुनकर पानीपत में लूम चलाकर कपड़ा तैयार कर रहे हैं. वहीं मेरठ में मो शाहिद, आशिक, साजिद आदि बुनकर लूम चला कर अपना और अपने परिवार की आजीविका चला रहे हैं. मो नेजाहत अंसारी ने बताया कि इसके अलावा बनारस, सूरत, अहमदाबाद में भी भागलपुर क्षेत्र के बुनकरों ने पलायन किया है. इससे यहां का कौशल पलायन कर गया. अब जो बुनकर बचे हैं, वो या अप्रशिक्षित हैं या उनकी उम्र ढल चुकी है. इतना ही नहीं टीवी, आंख, कान समेत किसी न किसी रोग से ग्रस्त हो गये हैं.

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