पारंपरिक तरीके से मनाया सामा-चकेवा का पर्व-भाई-बहन का पवित्र लोक पर्व है सामा चकेवा फोटो : संवाददाता,भागलपुरशहर के आदमपुर, छोटी खंजरपुर, सुरखीकल मिश्रा टोला, तिलकामांझी, नाथनगर, सिकंदरपुर, बरारी आदि मुहल्लों में बुधवार को सामा-चकेवा का पर्व पारंपरिक तरीके से मनाया गया. सामा खेलय गेलियई हे बहिना… जैसे गीतों से वातावरण गुंजायमान रहा. मिथिला का लोक पर्व सामा चकेवा कार्तिक पूर्णिमा की बुधवार की रात सामा चकेवा के विसर्जन के साथ ही समाप्त हो गया. द्वापर युग में कृष्ण की पुत्री और ऋषि पुत्र चक्रवाक के प्रेम पर आधारित भाई-बहन का यह पवित्र लोकपर्व सदियों से मिथिला में मनाया जाता आ रहा है. वर्तमान में सामा-चकेवा मिथिला सहित भारत के लोकप्रिय लोक नृत्यों में गिना जाता है. बुधवार की रात कार्तिक पूर्णिमा को बहनों ने सामा-चकेवा सहित चुगला, सतभैया, वृंदावन आदि मृतिका मूर्तियों का विसर्जन कर सप्ताह भर से चल रहे लोकपर्व सामा-चकेवा का उद्यापन किया. बहनों ने समदाउन गाते हुए अगले साल तक के लिए सामा-चकेवा को विदाई दी. इस दौरान सामा के खोंइचा में हर वह सामान दिया गया, जो लोग अपनी बेटी के ससुराल विदाई के अवसर पर देते हैं. हास्य विनोद करते हुए बहने अपने भाइयों के लंबी उम्र के लिए एक के बाद एक कर गीत गाती रही. भाइयों की लंबी उम्र की कामना करती रही. मिट्टी से बने सामा-चकेबा को भाइयों ने घुटने से तोड़ा. इस दौरान बहनों ने भाइयों को चूड़ा-गुड़, मिठाई दिया, वहीं सामा को भी चूड़ा-दही खिलाकर विदाई दी. बहने सामा के विदाई के गीत समदाउन गाकर उन्हें जुते हुए खेत में प्रवाहित किया.
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पारंपरिक तरीके से मनाया सामा-चकेवा का पर्व
पारंपरिक तरीके से मनाया सामा-चकेवा का पर्व-भाई-बहन का पवित्र लोक पर्व है सामा चकेवा फोटो : संवाददाता,भागलपुरशहर के आदमपुर, छोटी खंजरपुर, सुरखीकल मिश्रा टोला, तिलकामांझी, नाथनगर, सिकंदरपुर, बरारी आदि मुहल्लों में बुधवार को सामा-चकेवा का पर्व पारंपरिक तरीके से मनाया गया. सामा खेलय गेलियई हे बहिना… जैसे गीतों से वातावरण गुंजायमान रहा. मिथिला का लोक […]
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