मुंगेर: योग को लेकर मुंगेर की विश्वव्यापी पहचान है लेकिन इससे इतर सिगरेट, बंदूक और रेल कारखाना के चलते भी मुंगेर की पहचान है.चौराहों का शहर मुंगेर सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से भी काफी समृद्ध है.
रोज कहीं न कहीं साहित्यप्रेमियों की महफिल सजती है और भगवान की भक्ति होती है. इतिहास के पन्नों में भी मीर कासिम के नाम से यह शहर जुड़ा हुआ है, जिसने अंग्रेजों के खिलाफ मोरचा लिया था. मीर कासिम का किला आज भी मुंगेर की पहचान से जुड़ा है. शहर के एक किनारे से बहती गंगा और बगल में ही जमालपुर की पहाड़ी प्रकृति की अनमोल देन है. आनंद मार्ग की शुरुआत भी इसी शहर के एक हिस्से जमालपुर से हुई थी. सत्यानंद सरस्वती से जुड़े लोगों के लिए जो आत्मिक संबंध मुंगेर से है आनंदमार्गियों का वही जुड़ाव रेल नगरी जमालपुर से है. मुंगेर से जमालपुर की दूरी आठ किलोमीटर है.
मुंगेर की अर्थव्यवस्था में सिगरेट , बंदूक और रेल कारखाने का बहुत बड़ा योगदान है. आइटीसी यहां पर दुग्ध आधारित उद्योग की स्थापना कर रही है. योग के साथ-साथ अपनी पुरानी पहचान को भी मुंगेर छोड़ने को तैयार नहीं है. मुंगेर की गिनती पहले देश के चंद बड़े जिलों में होती थी. राजनीतिक क्षेत्र में भी मुंगेर देश के कई बड़े नेताओं की कर्मभूमि रही है. समाजवाद से लेकर राजनीति की सभी धाराओं का केंद्र मुंगेर रहा है. देश के कई बड़े राजनीतिक घरानों का भी मुंगेर से सीधा संपर्क है.
मुंगेर को अपने योग विद्यालय, स्वामी सत्यानंद सरस्वती और स्वामी निरंजनानंद पर तो गर्व है ही, लेकिन मुंगेर ने मीर कासिम और प्रभात रंजन सरकार से लेकर बिहार विभूति श्रीबाबू और मधुलिमये को भी याद रखा है. 1934 की प्राकृतिक त्रसदी (भूकंप) को मुंगेर भुला चुका है और अतीत पर गर्व तथा वर्तमान पर इतरा रहा है.