भागलपुर: दो अक्तूबर को गांधी जयंती है. इसी दिन लाल बहादुर शास्त्री जी की भी जयंती है. क्या हमने उनके आदर्शो को जिंदा रखा है या सिर्फ जुबानी रूप में उनकी जयंती मना उन्हें याद करते हैं. प्रभात खबर ने फेसबुक के माध्यम से पाठकों से सवाल पूछा था कि गांधी जी और शास्त्री जी के आदर्शो के आज समाज में क्या मायने हैं. इस पर कई पाठकों ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. अधिकांश पाठकों का मानना है कि वर्तमान परिस्थिति में इन महापुरुषों के आदर्शो पर चलना मुश्किल हो गया है. सत्यम शांडिल्य लिखते हैं कि इस जमाने में इनके आदर्शो पर चलना मुश्किल हो गया है. मानवेंद्र शुक्ला कहते हैं कि आज के समय में अगर कोई कहता है कि मैं गांधी जी आदर्शो पर चल रहा हूं तो समझो वह झूठ बोल रहा है.
मेंही प्रसाद यादव कहते हैं कि गांधी जयंती और शास्त्री जयंती मना कर सिर्फ उन्हें याद कर लेते हैं, लेकिन उनके आदर्शो पर चलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. आशीष कुमार मोनू कहते हैं उनके पथ पर चलना अत्यंत कठिन है. हबीब मुर्शिद खान कहते हैं नेता वोट के लिए याद करते हैं लेकिन भारतवासी उनको दिल से याद करते हैं. बबलू कुमार लिखते हैं कि उनको आदर्शो को सभी मानते हैं लेकिन दिल से नहीं. रामचंद्र घोष कहते हैं आज भारत महात्मा गांधी या शास्त्री जी के विचारों और आदर्शो को बिल्कुल भूल चुका है.
शायद ही कोई सरफिरा हो जो इनको रोल मॉडल मानता हो. बाजारवाद, कालाधन निजी भौतिक सुख, आज यही सब कुछ है, लोग चाहे जो भी बात करें. राहुल कश्यप कहते हैं कि लोग भले ही गांधी जी के आदर्श को अपनाने की बात करें लेकिन सभी मौकापरस्त होते हैं. मौका मिलते ही तमाम आदर्श ताक पर रख देते हैं. इसके अलावा राजकिशोर, अभिषेक शर्मा, आकांक्षा माधुरी राज, अनुज कुमार ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है.हमारे सवाल को 27 पाठकों ने लाइक किया है.