भागलपुर: विचारण व अन्वेषण के बीच आरोप व आरोप मुक्ति एक अहम कड़ी है, जिस पर न्यायालय को पैनी नजर रखनी चाहिए. निष्पादन न्याय हित में आना चाहिए. मंगलवार को डीआरडीए सभागार में नेशनल जूडिशियल एकेडमी व बिहार जूडिशियल एकेडमी के रिसोर्स पर्सन अधिवक्ता राम कुमार मिश्र ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 227,228 व 309 के बारे जानकारी देते हुए विधिज्ञ परिचर्चा कार्यक्रम में अपर लोक अभियोजकों से कही. उन्होंने कहा कि आरोप के गठन या आरोप मुक्ति (उन्मोचन) के संदर्भ में तकनीकी जानकारी तथा वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के बारे में उल्लेख किया.
उन्होंने अपर लोक अभियोजकों को जानकारी देते हुए कहा कि 227 ( डिस्चाजर्), 228 ( आरोप का गठन) व 309 ( विचारण -स्थगन) व अभियुक्त को पुन: जेल भेजना है. उन्होंने कहा कि लोक अभियोजक ने इस तरह का कार्यक्रम कर अपर लोक अभियोजकों में कानून की नयी सोच का संचार किया है.
परिचर्चा में लोक अभियोजक सत्य नारायण प्रसाद साह ने अपर लोक अभियोजकों से कहा लोक अभियोजक बनने के बाद मेरी प्राथमिकता थी कि इस तरह का विधिज्ञ परिचर्चा का आयोजन किया जाये, जिसे आज पूरा किया गया. उन्होंने कहा कि इस तरह की परिचर्चा का आयोजन अपर लोक अभियोजकों को एक जगह एकत्रित कर कानूनी जानकारी व प्रत्येक दिन होने वाली समस्याओं के बारे में इस परिचर्चा में अपनी समस्या को रख सके. परिचर्चा में 45 अपर लोक अभियोजक शामिल हुए. र्कायक्रम के सफल संचालन में अपर लोक अभियोजक ओम प्रकाश तिवारी व लोक अभियोजक कार्यालय के अधिवक्ता व सहायक लगे हुए थे. परिचर्चा शाम साढ़े तीन बजे से साढ़े पांच बजे तक चला.