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प्रभार पर विश्वविद्यालय

भागलपुरः तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय प्रभार के चेसिस पर चल रहा है. विश्वविद्यालय को न केवल स्थायी कुलपति चाहिए, बल्कि प्रतिकुलपति, कॉलेज निरीक्षक व परीक्षा नियंत्रक की भी स्थायी रूप में जरूरत है. यही नहीं, विश्वविद्यालय के 22 कॉलेज भी प्रभारी प्राचार्य के बलबूते चल रहे हैं. इसके कारण अधिकतर महत्वपूर्ण काम मंझधार में ही अटक […]

भागलपुरः तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय प्रभार के चेसिस पर चल रहा है. विश्वविद्यालय को न केवल स्थायी कुलपति चाहिए, बल्कि प्रतिकुलपति, कॉलेज निरीक्षक व परीक्षा नियंत्रक की भी स्थायी रूप में जरूरत है. यही नहीं, विश्वविद्यालय के 22 कॉलेज भी प्रभारी प्राचार्य के बलबूते चल रहे हैं. इसके कारण अधिकतर महत्वपूर्ण काम मंझधार में ही अटक रहे हैं. एक तरफ विश्वविद्यालय के सारे कॉलेज शिक्षकों की भारी कमी ङोल रहे हैं और दूसरी ओर इन्हीं में से कुछ शिक्षकों को अतिरिक्त प्रभार सौंप कर छात्रों की हकमारी की जा रही है. यानी दोनों तरफ से घाटे का सौदा. विश्वविद्यालय में आखिरी बार 27 जनवरी 2012 तक स्थायी कुलपति के रूप में डॉ केएन दुबे रहे. इसके बाद डॉ विमल कुमार व डॉ अरुण कुमार ने बारी-बारी से प्रभार लिया.

फिर प्रो अंजनी कुमार सिन्हा ने स्थायी कुलपति के रूप में इस साल 15 मार्च को योगदान दिया, पर कोर्ट के आदेश पर उन्हें महज लगभग डेढ़ महीने के बाद 26 अप्रैल को ही पद से हट जाना पड़ा. फिर प्रभारी कुलपति के रूप में अब तक डॉ एनके वर्मा सेवा दे रहे हैं. यही हाल प्रतिकुलपति के पद का भी है. डॉ तपन कुमार शांडिल्य के पद से हटने के बाद अब तक स्थायी प्रतिकुलपति विश्वविद्यालय में नियुक्त नहीं हो पाये. वर्तमान में इस पद पर डॉ एनके सिन्हा प्रभार के रूप में सेवा दे रहे हैं. बात परीक्षा नियंत्रक की करें, तो वर्ष 2010-11 में परीक्षा नियंत्रक के रूप में डॉ अरुण कुमार नियुक्त किये गये, लेकिन वे भी बीआरए विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर चले गये. उनके बाद से आज तक परीक्षा नियंत्रक के पद को कोई न कोई शिक्षक संभालते आ रहे हैं और छात्र-छात्रएं कभी रिजल्ट, तो कभी परीक्षा की समस्या ङोलते रहे हैं. नतीजतन वर्तमान में भी स्नातक के किसी भी खंड की परीक्षा विश्वविद्यालय समाप्त नहीं कर पाया है. जानकार मानते हैं कि स्थायी कुलपति नहीं रहने के कारण अब तक 22 कॉलेजों में स्थायी प्राचार्य का पद रिक्त है, जिसे प्रभारी प्राचार्य संभाल रहे हैं. इसके चलते कई बार कॉलेजों में तकनीकी कार्य फंस जाने की समस्या विश्वविद्यालय को सुननी पड़ती है. नेशनल मिशन फॉर एजुकेशन एंड इंफॉर्मेशन कम्यूनिकेशन टेक्नोलॉजी के अंतर्गत वर्ष 2009 से ही सभी पीजी विभाग और विश्वविद्यालय कार्यालय को इंटरनेट से जोड़ने की कवायद चल रही है. लेकिन यह योजना एक रूम के निर्माण व ऑप्टिकल फाइवर बिछने से एक कदम भी आगे नहीं चल पायी है.

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