भागलपुर: राज्य चलाने की कोई बेहतर व्यवस्था आज तक नहीं बन पायी है. जो व्यवस्था कम हानिकारक है, वह लोकतंत्र है. लोकतंत्र का गलत इस्तेमाल तानाशाही की ओर ले जाता है.
इंदिरा शाही इसी की उपज थी. आपातकाल के विरोध में जितनी जागरूकता देश ने दिखायी, उतनी अन्य देशों में नहीं दिखती. उक्त बातें प्रख्यात पर्यावरणविद् व विचारक अनुपम मिश्र ने शुक्रवार को गांधी शांति प्रतिष्ठान व माध्यम के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘आपातकाल और कवि भवानी प्रसाद मिश्र’ संगोष्ठी में कही. उन्होंने कहा कि कवि भवानी प्रसाद मिश्र जन पक्षधर व लोक पक्षधर थे.
शायद इसलिए आपातकाल के दौरान उन्होंने प्रतिरोध में सुबह, दोपहर व शाम में कविता लिखने लगे जिसे आपातकाल के बाद ‘त्रिकाल संध्या’ के नाम से प्रकाशित किया गया. उन्होंने बताया कि कक्षा आठ में जाने के बाद पहले दिन जब हिंदी के क्लास में गया, तो शिक्षक को भरोसा नहीं हो रहा था कि उनके क्लास में कवि भवानी प्रसाद मिश्र का पुत्र बैठा है. दरअसल,स्कूल नजदीक रहने के कारण दाखिला कराया गया था. पिता की सोच यह थी कि अच्छा शिक्षक है, तो स्कूल भी अच्छा होगा. मौके पर डॉ चंद्रेश व ललन ने भवानी प्रसाद मिश्र की कुछ चुनिंदा कविताओं क्रांति के त्योहार व काल का पहिला का पाठ किया.
संगोष्ठी की अध्यक्षता स्नातकोत्तर हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ नृपेंद्र प्रसाद वर्मा ने की. मंच संचालन माध्यम के संयोजक प्रेम प्रभाकर ने किया. संगोष्ठी में रामशरण, वासुदेव, प्रकाश चंद्र गुप्ता, उदय, एनुल होदा, डॉ त्रिभुवन प्रसाद सिंह, डॉ उपेंद्र साह, डॉ योगेंद्र, संजय कुमार, अशोक मिश्र, डॉ सुनील अग्रवाल, डॉ मनोज कुमार, डॉ बहादुर मिश्र, जवाहर मंडल, चांद बहन, मो बाकिर, मो दाउद, डॉ जयंत जलद, कुमार संतोष, पवन कुमार, संतोष कुमार, श्रवण कुमार शर्मा, डॉ विजय कुमार राय, डॉ सुधांशु शेखर, नंदा देवी, प्यारी देवी, राज कुमार, प्रकाश मिश्र, प्रभात झा, राज कुमार, प्रीति, भावानंद, सच्चिदानंद सिंह, राम नारायण भास्कर आदि उपस्थित थे.