बता दें कि नियमित रूप से थाना स्तर पर इस तरह बैठक आयोजित कर जमीन विवाद से जुड़े मामले को सुलझाने का निर्देश मुख्यमंत्री के स्तर से जारी हुआ था. इसके तहत थाना स्तर पर एक भूमि विवाद पंजी खोलना था. थाना आने वाले भूमि विवाद के मामले को इस पंजी में अंकित करना था और हर सप्ताह सीओ को थाना बुला कर उसका निबटारा करना था. लेकिन जिले के किसी भी थाने में भूमि विवाद निबटारे के लिए पंजी नहीं बनी. सीओ और थानेदार की नियमित बैठक भी नहीं होती है.
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15 वर्ष में छह सौ से अधिक हत्याएं
भागलपुर: जिले में पुलिस व जिला प्रशासन की लापरवाही से जमीन संबंधी विवाद लगातार बढ़ रहे हैं और हत्याएं हो रही हैं. जमीन से जुड़े विवाद को सुलझाने के लिए थाना स्तर पर पहले बैठक होती थीं. इसमें थानेदार और सीओ मिल कर जमीन से जुड़े विवाद सुलझाते थे, लेकिन अब थाने में यह बैठक […]
भागलपुर: जिले में पुलिस व जिला प्रशासन की लापरवाही से जमीन संबंधी विवाद लगातार बढ़ रहे हैं और हत्याएं हो रही हैं. जमीन से जुड़े विवाद को सुलझाने के लिए थाना स्तर पर पहले बैठक होती थीं. इसमें थानेदार और सीओ मिल कर जमीन से जुड़े विवाद सुलझाते थे, लेकिन अब थाने में यह बैठक नहीं हो रही है.
जमीन का विवाद नहीं सुलझने से हत्याएं हो रही हैं. जिले में होने वाली हत्या की वारदात में आधी हत्याएं जमीन विवाद में हो रही हैं. जिले में जमीन को लेकर हुई हत्याओं की लंबी फेहरिस्त रही है. नेता, अधिकारी, जनप्रतिनिधि से लेकर कई महत्वपूर्ण लोगों की जान जमीन के खेल में जा चुकी है. पिछले 15 साल में भागलपुर जिले में कुल 1415 हत्याएं हुई हैं. इसमें आधी जमीन विवाद में हुई. राज्य अलग होने और नवगछिया-भागलपुर के बीच पुल बनने के बाद शहर में जमीन की कीमतों में आया उछाल हत्याओं का कारण बन रहा है. भारी मुनाफे को देख इस कारोबार का अपराधीकरण हो गया है. कल तक आपराधिक गिरोह चलाने वाले गैंग के लोग जमीन माफिया कहलाने लगे. शहर में जमीन की कीमत सोने से भी महंगी हो गयी है. माफिया जहां-तहां जमीन पर कब्जा करने लगे और थानों में मुकदमों का बोझ पड़ने लगा. औसतन हर साल जिले में 100 से अधिक मुकदमे जमीन विवाद से जुड़े दर्ज हो रहे हैं. मामला दीवानी होने के कारण पुलिस भी इन मामलों में बहुत कुछ नहीं कर पाती है.
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